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गौतम रास : परिशीलन
में पधारे । देवों ने तत्क्षण ही वहाँ विशाल, सुन्दर, मनोहारी एवं रमणीय समवसरण की एवं अष्ट प्रातिहार्यों की रचना की। महावीर समवसरण के मध्य में अशोक वृक्ष के नीचे देव-निर्मित सिंहासन पर बैठकर अपनी अमोघ दिव्यवाणी से स्वानुभूत धर्मदेशना देने लगे।
केवलज्ञान से देदीप्यमान प्रभु के दर्शन करने और उनकी अमृतोपम देशना को सुनने के लिये अपापा नगरी का का जन-समूह लालायित हो उठा और हजारों नर-नारी समवसरण में जाने के लिये उमड़ पड़े । गली-गली में एक ही स्वर घोष | कलरव गूंज उठा कि 'सर्वज्ञ के दर्शन के लिये त्वरा से चलो। जो पहले दर्शन करेगा वह भाग्यशाली होगा।" फलतः प्रात:काल से अपार जनमेदिनी समवसरण में पहुँच कर, धर्मदेशना सूनकर अपने जीवन को सफल / कृतकृत्य समझने लगी।
देवगणों में केवलज्ञान का महोत्सव करने, सर्वज्ञ के दर्शन करने और उनकी दिव्यवाणी सुनने की होड़ा-होड़ मच गई । फलत: देवता भी अपनी देवांगनाओं के साथ स्वकीयस्वकीय विमानों में बैठकर समवसरण की अोर वेग के साथ भागने लगे । हजारों देव-विमानों के आगमन से विशाल गगनमण्डल भी आच्छादित हो गया।
याज्ञिकों का भ्रमः- यज्ञ मण्डप में विराजमान अध्वर्य प्राचार्यों और सहस्रों यज्ञ-दर्शकों की दृष्टि सहसा नभो-मण्डल की ओर उठी । अाकाश में एक साथ हजारों विमानों को देख कर यज्ञ में उपस्थित लोगों की आँखें चौंधिया गईं। आँखों को मलते हए स्पष्टतः देखा कि सहस्रों सूर्यों की तरह देदीप्यमान
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