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गौतम रास : परिशीलन
घट रूप पर्याय का आविर्भाव होता है और दूसरे क्षण पट का ध्यान करने पर घट रूप पर्याय नष्ट हो जाती है और पट रूप पर्याय उत्पन्न हो जाती है । आखिर ये ज्ञान रूप चेतन पर्यायें किसी सत्ता की ही होंगी ? यहाँ भूत शब्द का अर्थ पृथ्वी, अप, तेजस् आदि पांच भूतों से न होकर जड़-चेतन रूप समस्त ज्ञेय पदार्थों से है । जैसे प्राण के निकल जाने पर पांच भूत तो ज्यों के त्यों बने रहते हैं । तुम ही विचार करो कि वह कौनसी सत्ता है जिसके निकल जाने से पंच भूतात्मक काया निश्चेष्ट हो जाती है तथा इन्द्रियां सामर्थ्यहीन हो जाती हैं । इन्द्रभूति ! चेतना शक्ति चित् रूप है । वह मरणधर्मा नहीं है । शरीर के नष्ट होने से चेतना नष्ट नहीं होती है । पुनः, विचारक के आधार पर ही विचार की सत्ता है । यदि विचार है तो विचारक होगा ही । अपने अस्तित्व के प्रति सन्देहशील होना यह भी एक विचार है और यह विचार कोई विचारशील सत्ता ही कर सकती है, अतः ग्रात्मा की सत्ता तो स्वयं सिद्ध है । घट यह नहीं सोचता की मेरी सत्ता है या नहीं ? अतः तुम्हारी शंका ही श्रात्मा के अस्तित्व को सिद्ध करती है । फिर तुम्हारे वेद-श्रुतियों के प्रमाणों से भी यह स्पष्टतः सिद्ध होता है कि जीव का स्वतन्त्र अस्तित्व है ।
दीक्षा - सर्वज्ञ महावीर के मुख से इस तर्क प्रधान और प्रामाणिक विवेचना को सुनकर इन्द्रभूति के मनः स्थित संशयशल्य पूर्णत: नष्ट हो गया । अन्तर् मानस स्फटिकवत् विशुद्ध हो गया और प्रभु को वास्तविक सर्वज्ञ मानकर, नतमस्तक एवं करबद्ध होकर कहा - 'स्वामिन्! मैं इसी क्षण से आपका हो गया हूँ । अब आप मुझे पांच सौ शिष्यों के परिवार के साथ अपना शिष्य बनाकर हमारे जीवन को सफल बनावें ।'
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