Book Title: Dharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 13
________________ -- हेमधेनुवरादीनां दातारः सुलना जुवि ॥ पुनः पुरुषो लोके, यः प्राणिष्वनयप्रदः ॥ ३३ ॥ अर्थ- सुवर्ण, गाय, ने वरदाननां देनाराश्रो तो या पृथ्वीमां सुलन होय बे, पण जे माणस प्राणीश्र प्रते अजयदान थापेबे, तेवो माणस या डुनीश्रमां दुर्लन बे. ॥ ३३ ॥ " महतामपि दानानां कालेन दीयते फलम् ॥ जीताजयप्रदानस्य, दय एव न विद्यते ॥ ३४ ॥ अर्थ- मोटां दानोनुं पण फल काले करीने दय पामे बे, पण बीता एवा प्राणीने अजयदान देवानुं जे फल, तेनो दयज थतो नथी. ॥ ३४ ॥ यथा मेsप्रियो मृत्युः सर्वेषां प्राणिनां तथा ॥ तस्मान्मृत्युजयत्रस्ता, स्त्रातव्याः प्राणिनो बुधैः ॥ ३५ ॥ - वली हे युधिष्टर ! एम विचारखं के जेम मने पोताने मृत्यु प्रिय लागे बे, तेम सर्व प्राणीश्रोने पण ते प्रिय लागे बे; माटे माह्या माणसोए मृत्युनां जयश्री जयजीत थला प्राणीयोनुं रक्षण करवुं ॥ ३५ ॥ एकतः कृतवः सर्वे; समग्रवरदक्षिणाः ॥ एकतो जयजीतस्य, प्राणिनः प्राणरक्षणम् ॥ ३६ ॥ - वली हे युधिष्टर ! एक बाजु सघला वर-दाननी दक्षिणावाला सर्वे यज्ञो ने बीजी तरफ जयजीत थपला प्राणीनां प्राणनुं रक्षण करवुं (ते वधारे श्रेष्ट . ) ॥ ३६ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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