Book Title: Dharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

Previous | Next

Page 12
________________ सर्व प्राणीश्रो प्रते अजयदान आपे , ते दान सथी श्रेष्ठ गणाय . ॥॥ कस्त्विनानां सहस्रंतु, यो विजेन्यः प्रयचति ॥ एकस्य जीवितं दद्यात्, कलां नाप्यतिषोमशीम् ॥ ए॥ अर्थ-जे माणस ब्राह्मणो प्रते हजारो हाथीपोर्नु दान आपे बे, ते पण शुं हिसाबमां ? केमके, जे माणस एकज प्राणीप्रते जीवितदान आपे , तेनी साथे ते सोलमे हिसे पण नथी. ॥शए॥ ततो नूयस्तरो धर्मः, कश्चिदन्यो न नूतले ॥ प्राणिनां नयनीताना, मजयं यत्प्रदीयते ॥ ३० ॥ अर्थ-माटे हे युधिष्टर !! जयजीत थएला प्राणी ओने जे श्रनयदान श्राप, तेथी वधारे बीजो को पण धर्म या पृथ्वीपर नथी. ॥३०॥ वरमेकस्य सत्वस्य, दद्यादजयदक्षिणाम् ॥ नतु विप्रसहस्रेन्यो, गोसहस्रमलंकृतम् ॥ ३१॥ अर्थ-वली हे युधिष्टर!! एक प्राणी प्रते अजयदाननी दक्षिणा देवी ते श्रेष्ठ , पण हजारोब्राह्मणोप्रते,आजूषणयुक्त हजारो गायो देवी तेश्रेष्ट नथी.३१ अजयं सर्वसत्वेन्यो, यो ददाति दयापरः ॥ तस्य देहवियुक्तस्य, लयं नास्ति कुतस्तनः ॥३२॥ अर्थ-जे माणस सर्व प्राणीयो प्रते, दयामां तत्पर थयो थको अनयदान आपेले, ते माणसने मृत्यु बाद पण कोइ जगोए जय प्राप्त थतो नथी. ॥ ३ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 ... 144