Book Title: Dharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 11
________________ अहिंसा प्रथमं पुष्पं, पुष्पमिंत्रियनिग्रहः ॥ सर्वनूतदयापुष्पं, हमापुष्पं विशेषतः॥ २४ ॥ ध्यानपुष्पं तपःपुष्पं, झानपुष्पं च सप्तमम् ॥ सत्यं चैवाष्टमं पुष्पं, तेन तुष्यंति देवताः ॥ २५॥ अर्थ-पेहेढुं पुष्प अहिंसा, बीजं पुष्प इंडीश्रोनो निग्रह, त्रीजं पुष्प सर्व प्राणीयोमा दया, चोथ पुष्प विशेषे करीने कमा, पांचमुं पुष्प ध्यान, ब्लु पुष्प तप, सातमुं पुष्प ज्ञान,अनेआठमुंपुष्प सत्य बे,एवीरीतनां पुष्पोथी (पूजन करवाश्री) देवताओ प्रसन्न थाय . पृथिव्यामप्यहं पार्थ, वायावग्नौ जलेऽप्यहम् ॥ वनस्पतिगतश्चाहं, सर्वनूतगतोऽस्म्यहम् ॥ २६॥ अर्थ-वली हे युधिष्टर!! पृथ्वीमां,वायुमां,अग्निमां, जलमां अने वनस्पतिमां पण हुं प्राप्त थएलो बुं,अने एवी रीते पांचे नूतोमा हुँ प्राप्त थएलो ढुं. ॥२६॥ यो मां सर्वगतं ज्ञात्वा, नच हिंसेत्कदाचन ॥ तस्याहं न प्रणिस्यामि, स च मे न प्रणिस्यति ॥ १७ ॥ अर्थ-जे माणस मने सर्व व्यापक जाणीने, कोश वखते हिंसा करतो नथी, ते माणसप्रतेथी हुंधर जश नहीं, तथा ते माराथी पूर जशे नही. ॥७॥ यो ददाति सहस्राणि, गवामश्वशतानि वा ॥ अनयं सर्वसत्वेन्य, स्तहानमतिरिच्यते ॥ २७ ॥ अर्थ-जे माणस हजारो गायो तथा सेंकमो घोडा. श्रो श्रापे , (ते कई हिसाबमां नथी) पण जे माणस Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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