Book Title: Dharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 9
________________ ५ एवा अर्थ- दुनीयामां " हुं मरी जइश विचारथी माणसने जे दुःख थाय बे, ते अनुमानथी है . ने जयश्री परजीवनुं पण रक्षण करी शकाय बे ॥ १५ ॥ उद्यतं शस्त्रमालोक्य, विषादजयविह्वलाः ॥ जीवाः कंपति संत्रस्ता, नास्ति मृत्युसमं जयम् ॥ १६ ॥ अर्थ- जगामेला शस्त्रने जोइने, खेद विह्वल थपला जीवो, त्रास पामता थका केमके, मृत्यु समान बीजो जय नथी. ॥ कंटकेनापि विवस्य, महती वेदना जवेत् ॥ चक्र कुंता सिशक्त्याद्यैरिंग्द्यमानस्य किं पुनः ॥ १७ ॥ अर्थ- कांटाथी विधारला प्राणीने पण ज्यारे मोटी वेदना थाय बे, त्यारे चक्र, जालु, तलवार, तथा बरी यादिकथी बेदाता प्राणीनी वेदनानी तो वातज शी करवी ? ॥ १७ ॥ यद्दद्यात्कांचनं मेरुं कृत्स्नां चापि वसुंधराम् ॥ सागरं रत्नपूर्णवा, नच तुल्यमहिंसया ॥ १९ ॥ " For Personal and Private Use Only 22 Jain Educationa International कंपे बे, जीवित दीयते मार्यमाणस्य, कोटिं जीवितमेववा ॥ धनकोटिं न ग्रहणीयात्सर्वो जीवितमिति ॥ १८ ॥ अर्थ-मरता एवा प्राणीने क्रोम धन अथवा जो पीएं, तो ते क्रोम धनने ग्रहण नहीं करे; पण जीवितने ग्रहण करशे; केमके सर्व प्राणी जीतिने इ . ॥ १८ ॥ १६ ॥ www.jainelibrary.org

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