Book Title: Dharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran Author(s): Shravak Bhimsinh Manek Publisher: Shravak Bhimsinh Manek View full book textPage 7
________________ अर्थ-दया लक्षण जेनुं, एवो धर्म ; तथा प्राणीयोनी जे हिंसा ते अधर्म के; माटे हे वत्स! धर्मनां अर्थि माणसे प्राणीयोनी दया करवी. ॥७॥ ध्रुवं प्राणिवधो यज्ञे, नास्ति यज्ञस्त्वहिंसकः॥ सर्वसत्वेषु हिंसैव, यदा यज्ञो युधिष्ठिरः॥७॥ अर्थ-यज्ञमां खरेखर प्राणीनो वध बे; माटे हे युधिष्ठर! या हिंसा विनानो नथी, माटे जो यज्ञ करीए तो सर्व प्राणीयोमा हिंसा थाय बे. ॥७॥ इंजियाणि पशून् कृत्वा, वेदी कृत्वा तपोमयीं ॥ अहिंसामाहुतिं कृत्वा, आत्मयज्ञं यजाम्यहम् ॥ ए॥ अर्थ-विष्णु जगवान कहे डे के,हेयुधिष्ठिर? इंजियोरूपी पशुने करीने,तथा तपरूप वेदी करीने,अने दयारूपी श्रादुती करीने, हुंधात्मरूपी यज्ञ करूं दूं. ॥ए॥ यूपं छित्वा पशुन् हत्वा, कृत्वा रुधिरकर्दमम् ॥ यदैवं गम्यते स्वर्ग, नरके केन गम्यते ॥ १० ॥ अर्थ-पशुने बांधवानो यज्ञस्तंन बेदीने,तथा पशुने हणीने, अने लोहीनो कर्दम करीने, ज्यारे स्वर्गे जवातुं होय, तो हे युधिष्ठिर! पठी नरके कोण जशे!!!॥१०॥ महानारतनां शांतिपर्वमा प्रथम पदमां कडं डे के, मातृवत्परदाराणि परजच्याणि लोष्ठवत् ॥ आत्मवत्सर्वजूतेषु, यः पश्यति स पश्यति ॥११॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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