Book Title: Dharm Sarvasvadhikar tatha Kasturi Prakaran
Author(s): Shravak Bhimsinh Manek
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 6
________________ २ अर्थ-धर्म केम उत्पन्न याय बे ? तथा ते केम वृद्धि पामे बे ? तथा तेने शीरीते स्थिर करी शकाय बे ? तथा शीरीते ते नाश थाय बे ? ( तेनो विचार करवो.) सत्येनोत्पद्यते धर्मो, दया दानेन वर्धते ॥ कमया च स्थाप्यते धर्मः, क्रोधलोजाविनश्यति ॥ ४ ॥ अर्थ- सत्यश्री धर्मनी उत्पत्ति थाय छे; दया अने दानथ तेनी वृद्धि थाय बेः क्षमाथी ते स्थिर थाय बे; तथा क्रोध अने लोनथी तेनो नाश थाय बे. ॥ ४ ॥ सर्वे वेदान तत्कुर्युः सर्वे यज्ञाश्च भारत ॥ सर्वे तीर्थाभिषेकाश्च यत्कुर्यात्प्राणिनां दया ॥ ५ ॥ अर्थ- हे जारत, प्राणीयोपरनी दया जे कई (अमूल्य लाज) करे बे; ते (लाज) सघला वेदो, सघला यज्ञो, तथा सर्वे तीर्थोमां करेलां स्नानो पण करीशकतां नथी. 3 अहिंसा सत्यमस्तेयं, त्यागो मैथुनवर्जनम् ॥ एतेषु पंचसूक्तेषु, सर्वे धर्माः प्रतिष्ठिताः ॥ ६ ॥ अर्थ-हिंसा (दया), सत्य चोरी नही करवी, ते ( परिग्रहनो ) त्याग, अने मैथुननुं वर्जन ए पांच बाबत कदेवाश्री सर्वे धर्मोनुं प्रतिपादन थाय बे. ॥ ६ ॥ हिंसालो धर्मो धर्मः प्राणिनां वधः ॥ तस्माद्धर्मार्थिना वत्स, कर्तव्या प्राणिनां दया ॥ ७ ॥ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org

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