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संक्षिप्त परिचय रु० १५०१) का श्री. महात्मा गाँधी पुरस्कार (पंचम) आपको प्रदान किया गया। (चतुर्थ पुरस्कार पू० विनोबाजीको प्रदान किया गया था।)
सन् १९५७ में महाराजा सयाजीराव यूनिवर्सिटी, बड़ौदाके तत्त्वावधान में महाराजा सयाजीराव ओनरेरियम लेक्चर्सकी श्रेणीमें 'भारतीय तत्त्वविद्या' पर आपने पाँच व्याख्यान दिये ।।
सन् १९५७ में गुजरात यूनिवर्सिटीने आपको डॉक्टर ऑफ लेटर्स (D. Litt.) की सम्मानित उपाधि प्रदान करनेका निर्णय किया।
सन् १९५७ में अखिल भारतीय रूपमें संगठित 'पंडित सुखलालजी सन्मान समिति ' द्वारा बंबईमें आपका सार्वजनिक ढंगसे भव्य सन्मान किया गया । एक सन्मान-कोश भी अर्पित किया गया और आपके लेख-संग्रहों ( दो गुजरातीमें और एक हिन्दीमें—कुल तीन ग्रंथों )का प्रकाशन करनेकी घोषणा की गई ।
साहित्य सर्जन पंडितजीके संपादित, संशोधित, अनुवादित और विवेचित ग्रंथोंकी नामावली निम्नांकित है
(१) आत्मानुशास्तिकुलक-( पूर्वाचार्य कृत ) मूल प्राकृत; गुजराती अनुवाद (सन् १९१४-१५)।
(२-५) कर्मग्रंथ १ से ४-देवेन्द्रसूरि कृत; मूल प्राकृत; हिन्दी अनुवाद, विवेचन, प्रस्तावना, परिशिष्टयुक्त; सन् १९१५ से १९२० तक; प्रकाशक : श्री आत्मानंद जैन पुस्तक प्रचारक मंडल, आगरा ।
(६) दंडक–पूर्वाचार्य कृत प्राकृत जन प्रकरण ग्रंथका हिन्दीसार; सन् १९२१, प्रकाशक उपयुक्त ।
(७) पंच प्रतिक्रमण-जैन आचार विषयक ग्रन्थ; मूल प्राकृत; हिन्दी अनुवाद विवेचन, प्रस्तावना युक्त; सन् १९२१; प्रकाशक उपर्युक्त ।
(८) योगदर्शन-मूल पातंजल योगसूत्र; वृत्ति उपाध्याय यशोविजयजी कृत तथा श्री हरिभद्रसूरि कृत प्राकृत योगविशिका मूल, टीका (संस्कृत) उपाध्याय यशोविजयजी कृत; हिन्दी सार, विवेचचन तथा प्रस्तावना युक्त; सन् १९२२; प्रकाशक उपर्युक्त ।
(९) सन्मतितर्क-मूल प्राकृत सिद्धसेन दिवाकर कृत; टीका (संस्कृत) श्री अभयदेवसूरि कृत; पाँच भाग, छठा भाग मूल और गुजराती सार, विवेचन तथा प्रस्तावना सहित; पं. बेचरदासजीके सहयोगसे । सन् १९२५ से १९३२ तक;
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