Book Title: Dan Kalpadrum
Author(s): Jinkirtisuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund
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अलास्क र
खातभूमिसमुत्थायां, कुम्भिकायामथाश्मनः । आशुवृत्त्या प्रविश्यासो, तत्र रात्रिमजीगमत् ॥७६ ॥ प्रातः सम्बाधवक्रायास्तस्या निर्यातुमक्षमः। दुःखेनाम्रियतालिख्य, गाथे द्वे पार्श्वयोईयोंः ॥ ७७॥ अथ तत्र वने प्राप्ता, अन्विष्यन्तः सुता मुहः । मृतं पितरमद्राक्षुर्गाथे च द्वे अवीवचन् ॥ ७८॥ वग्घभएण पविठ्ठो, छहाहओ निग्गमंमि असमत्थो। अवसट्टोवगओ, पुत्तय! पत्तो अहं निहणं ॥७९॥ इह लोगंमि दुरंते, परलोग विबाहगे दुहविवागे। महवयणेणं पावे वजेजां पुत्तय ! अणक्खे ॥ ८ ॥ हितोपदेशोपनिषद्भूतां भूतार्थसाक्षिणीम् । धारयित्वेति ते गाथाद्वयीं धर्मजुषोऽभवन् ॥ ८१ ॥ सोऽपि दुःखसहस्रौघानैहिकामुष्मिकान्मुहुः । कुलालोऽन्वभवद्रोषदोषद्रुमफलोपमान् ॥ ८२ ॥
सहेतुरपि निर्हेतुरिव नेा सुखावहा । कपिकच्छूपि क्वापि, किमु सौख्याय जायते ? ॥ ८३ ॥ । BI एवं दुरन्तदुरितोदयदुस्सहानि, दुःखानि चेत् क्षपयितुं प्रयतं मनो वः। ईयां विमुच्य जिनकीर्त्तितधर्मतातं, वत्सास्तदाश्रयतसद्गुणपक्षपातम् ॥ ८४ ॥ वसन्ततिलका०॥ इति श्रीतपागच्छनायकश्रीसोमसुन्दरसूरिविनेयश्रीजिनकीर्तिसूरिप्रणीते श्रीधन्यचरित्रशालिनि
श्रीदानकल्पद्रुमे लक्षद्वयाजेनो नाम द्वितीयः पल्लवः ॥२॥
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