Book Title: Dan Kalpadrum
Author(s): Jinkirtisuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 80
________________ * दानक० प. ॥३६॥ *** **** जय! जीव ! चिरं नन्देत्यादिवादिषु बन्दिषु । यावज्जीवोपभोगार्ह, ददतं धनसञ्चयम् ॥७२॥ सरोवरोऽवलोकाय, कौतुकायतलोचनम् । धन्यं तत्रागतं सर्वे, नेमुः कर्मकरा मुदा ॥ ७३ ॥ पञ्चभिः कुलकम् ॥ भृत्यवृत्त्याथ दृष्ट्वासौ, क्लिश्यन्निजकुटुम्बकम् । दध्यावहो अनुल्लङ्घया, कर्मरेखा सुरैरपि ॥ ७४ ॥ पितरौ भ्रातरो भ्रातुर्जाया जाया ममापि च । प्राप्यन्त हन्त देवेन, दुर्दशां कीदृशीमहो! ॥ ७५॥ शालिभद्रखसाप्येषा, कथं वहति मृत्तिकाम् ? । हरिश्चन्द्रोऽपि किंवाम्बु, न चाण्डालगृहेऽवहत् ? ॥७॥ समयं गमयामास, दमयन्त्यपि दुःखिनी । एकाकिनी वने घोरे, को रे वके विधौ सुखी? ॥७७ ॥ नृपतेर्मुकुटाद्धष्टं, रजसा छादितं भुवि । जनांहिघटनां रत्नमपि हन्त सहत्यहो!॥ ७८ ॥ ध्यात्वेति पितरं प्राह, के यूयं ? कुत आगताः? ।सोऽपि गोपितवंशादि, ददौ यत् किञ्चिदुत्तरम् ॥७९॥ दध्यौ धन्योऽधुना ऋद्धं, नाभिजानन्ति माममी । खापत्यमपि धौरेयं, सञ्जातं पशवो यथा ॥ ८०॥ अगोपयन् खवंशाद्यमधुना निर्धना अमी। दर्शयेयुः किमश्रीकास्ताराः खं यदि वा दिवा ? ॥ ८१॥ ॥३६॥ ***** Jain Education For Private Personel Use Only

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