________________
मैंने सुना है, एक व्यक्ति बुखार से ग्रस्त हो गया। वह कई दिन तक घरेलू इलाज कराता रहा पर स्वस्थ न हो पाया। वह चिकित्सक के पास पहुँचा। चिकित्सक ने उसे पीने की दवा दी। उस व्यक्ति के घर में एक पालतू बंदर था। व्यक्ति ने दवा की एक खुराक ली। पास बैठे बंदर ने जब अपने मालिक को दवा पीते देखा तो उसके मन में भी दवा पीने की इच्छा हुई। उसने मालिक से नजर चुराकर दवा पी ली। दवा जबरदस्त कड़वी थी। दवा पीते ही बन्दर ने बड़ा विचित्र-सा मुँह बनाया। वह दाँत किटकिटाने लगा और अपने मालिक को घुड़काने लगा। बन्दर की इस भाव-भंगिमा को देखकर मालिक को बड़ी जोर की हँसी आयी। वह आधे घंटे तक लगातार हँसता रहा, क्योंकि बंदर बार-बार अपना मुँह बिगाड़ रहा था। आश्चर्य! दो घंटे बाद जब उसने थर्मामीटर से अपना बुखार मापा तो उसे खबर लगी कि उसका बुखार उतर चुका है। वह अपने आपको काफी हल्का महसूस करने लगा।
___मैं यही बताना चाह रहा हूँ कि जो काम दवा की दस खुराक नहीं कर पाती है, वह काम प्रसन्नता की एक खुराक कर जाया करती है। प्रसन्नता हमारे भीतर उत्साह पैदा करती है। उत्साह से मनोयोग जन्मता है
और मनोयोग किसी भी कार्य की पूर्णता का प्राण होता है। उत्साहहीन व्यक्ति भले ही कितना भी काम करता रहे लेकिन उसे मनचाहा परिणाम नहीं मिल सकता। दुनिया के जितने भी महापुरुषों ने बड़े-बड़े कार्य किये हैं, उनके पीछे उनका उत्साह ही था। जीवन-विकास का मंत्र : आत्मविश्वास
तनाव-मुक्ति के लिए प्रसन्नता और उत्साह का ही मित्र बनता है हमारा 'आत्मविश्वास'। यह तो जीवन में वही काम करता है जो कार या बस को चलाने में पैट्रोल या डीजल करता है। शरीर में जितना रक्त का महत्व है उतना ही महत्व जीवन में आत्मविश्वास का है । एक मैदान में दो खिलाड़ी उतरते हैं। एक हारता है और एक जीतता है। इसमें अगर सबसे बड़ा कारण है तो दो में से एक का आत्मविश्वास ही है। यह जीवन का वह पुख्ता सहारा है जिससे हम बड़ी-से-बड़ी सफलता को आत्मसात् करते हैं और हर बाधा को लांघ सकते हैं।
25 For Personal & Private Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org