Book Title: Chinta Krodh aur Tanav Mukti ke Saral Upay
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 124
________________ काफी वर्ष पहले की बात है, मैं बैंगलोर में मुख्य मार्ग से गुजर रहा था। मैंने देखा कि चौराहे पर लाल बत्ती जल रही थी इसलिए काफी गाड़ियाँ रुकी हुई थीं। गाड़ियों में बैठे लोगों के चेहरे पर अपने व्यवसायधंधे तथा और भी कई बातों की परेशानिय साफ झलक रही थीं। इतने में ही मेरे कानों में भूभ.......... पी पी' की आवाज आई। मैंने देखा कि उन वाहनों में एक व्यक्ति साइकिल लिए खड़ा था। साइकिल पर डण्डे पर लगी छोटी-सी सीट पर एक बच्चा बैठा था। आस-पास खड़ी गाड़ियों को देख कर वह बच्चा हाथ से स्टीरिंग को घूमाने का अभिनय कर रहा था और मुँह से गाड़ी को चलाने की आवाज निकाल रहा था। न केवल मुझे अपितु मेरे साथ चल रहे अन्य लोगों को भी उस बच्चे की इस हरकत को देख कर हँसी आ गई। मुझे लगा कि हमारे इर्द गिर्द कितनी खुशियों के माहौल होते हैं। अभी जयपुर से राजेन्द्र जी ओसवाल मेरे पास आए थे। सुलझे हए विचार के सेवाभावी व्यक्ति हैं। वे कहने लगे कि उन्होंने गायों की चिकित्सा का शिविर लगाया था। एक गाय का बच्चा ऐसा लाया गया जिसकी दो टांगें टूटी हुई थीं। शिविर में उसका उपचार हुआ। जब वह बछड़ा शिविर में लाया गया तो पीड़ा से इतना कराह रहा था कि एक सैकेंड भी सुख से बैठ ही नहीं पा रहा था। लेकिन सात दिन उपचार के बाद वह अपने पाँवों से चलने लगा। वे बंधु मुझे कहने लगे कि मेरे घर बेटे के जन्म होने पर भी मुझे इतनी खुशी नहीं हुई होगी जितनी उस बछड़े को चलते हुए देख कर हुई। सेवा में सुख का सुकून रतलाम के एक महानुभाव हैं, शांतिलाल जी चौरड़िया। वे जीवदया प्रेमी हैं; एक बार हमारे साथ जोधपुर से नागौर की ओर पैदल चल रहे थे। सुबह के कोई सात बजे होंगे। उन महानुभाव के तीन दिन का उपवास था और साढे आठ-नौ बजे उसकी पूर्णता करनी थी। यकायक हमने देखा कि सड़क के किनारे एक गाय घायल पड़ी थी और उसके पाँव की हड्डियाँ टूट गयी थीं। उसके शरीर से खून बह हा था। लगभग अर्द्ध मूर्छित जैसी थी वह । हमने आस-पास की ढाणी में रहने वाले लोगों से उसके उपचार Jain Education International 123 For Persohar & Private Use Only www.jainelibrary.org

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