Book Title: Chinta Krodh aur Tanav Mukti ke Saral Upay
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 131
________________ संत से भी ज्यादा पवित्र जीवन जी लिया करते हैं और कुछ साधु ऐसे होते हैं जो गृहस्थ से भी निकृष्ट जीवन जीते हैं। आप गृहस्थी बसाकर घर में रहते हैं या संन्यास लेकर जंगल में चले गए है, पत्नी के साथ रहते हैं या पत्नी से विरक्त हो गए हैं, यह खास बात नहीं है। खात बात यह है कि आप अपना जीवन कितनी मर्यादा और संयम से जी रहे हैं। मर्यादा : बंधन नहीं, शैली है मर्यादा जीवन का बंधन नहीं है अपितु निर्मल और व्यवस्थित रूप से जीवन जीने की शैली है। मर्यादा चाहे गृहस्थ की हो या संत की, चपरासी की हो या अधिकारी की, नेता की हो या प्रजा की, हर व्यक्ति तभी शोभा पाता है जब वह अपनी मर्यादाओं में जीता है। वह शोभाहीन हो जाता है जो अपने जीवन की मर्यादाओं को त्याग देता है। हमारा अतीत हमारे जीवन का आदर्श रहा है। भारत के इतिहास में ऐसे गौरवमय पुरुष हुए हैं जिनका नाम लेने से हृदय गर्व से भर जाता है और मस्तक ऊँचा उठ जाता है। हमारा अतीत गौरवशाली रहा पर देखें कि वर्तमान कैसा है ? अतीत की गौरवमय गाथाओं को गाने के साथ उचित रहेगा कि हम अपना वर्तमान भी गौरवमय बनाने की कोशिश करें। प्राचीन समय में लोग मर्यादित जीवन जीने की कोशिश करते थे, लेकिन आज के समय में मैं देख रहा हूँ कि मर्यादाओं का हनन हो रहा है और उनका मखौल उड़ाया जाता है। हम खान-पान, रहन-सहन, बोलचाल और आर्थिक संसाधनों में जिस तरह से मर्यादाओं को तिलांजलि देते जा रहे हैं उससे लगता है कि हमारा जो अतीत गर्व के काबिल था, वर्तमान कहीं थूकने के लायक न रह जाए। आज को देखते हए अतीत का गौरव स्वप्न प्रतीत होता है। हमारे कलुषित वर्तमान ने अतीत के गौरव को धूमिल कर दिया है। ढोंग नहीं, ढंग से जिएं मनुष्य के जीवन में हर कार्य की सीमा निर्धारित की जाए। महावीर की पूजा बहुत सरलता से की जा सकती है लेकिन उनके आदर्श और संदेशों को ईमानदारी से जीवन में जीना कठिन हैं। राम की पूजा 130 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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