Book Title: Chinta Krodh aur Tanav Mukti ke Saral Upay
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 141
________________ नाम पर टुकड़े लपेटे हुए नजर आते हैं। ऊपर के कपड़े नीचे आ रहे हैं और नीचे के कपड़े ऊपर चढ़ते जा रहे हैं। आपके अपने शौक हो सकते हैं, इच्छाएँ और भावनाएँ भी हो सकती हैं लेकिन हर परिवार और समाज की भी अपनी मर्यादाएं होती हैं। अपने शौक, फैशन और इच्छाओं के पीछे घर की मर्यादाओं को नहीं तोड़ा जाना चाहिए। अगर आप तीव्र गति से कार चला रहे हैं और सामने से कोई गुजर रहा है। तभी कार के ब्रेक फेल हो जाएँ तो गंभीर दुर्घटना हो सकती है। आपके अमर्यादित ढंग से कार चलाने के कारण किसी की जान भी जा सकती है। इसी तरह अमर्यादित आचरण के साथ अगर आप अपने जीवन को जी रहे हैं तो जानबूझकर अपने को बिगाड़ रहे हैं, मटियामेट कर रहे हैं। हमारे यहाँ एक शब्द आता है प्रभावना' - क्या अर्थ है इसका? रुपये-पैसे, नारियल, लड्डू या अन्य कोई भी वस्तु बांट देना प्रभावना नहीं है। वास्तविक प्रभावना वह है जहाँ व्यक्ति हमारे अच्छे चाल-चलन, आचार-विचार और व्यवहार से प्रभावित हो जाए। दूसरा व्यक्ति तुम्हारे निर्मल आचरण को देखकर खुद भी निर्मल आचरण से जीने का संकल्प करे -- यह है प्रभावना - नैतिक आचरण की प्रभावना। कहकर करवाने की बजाय स्वयं का उदाहरण प्रस्तुत करें कि दूसरे भी स्वप्रेरणा से बेहतर आचरण करने लगे। भाषा में सुई हो, मगर धागे वाली दूसरी मर्यादा है भाषा की। अगर आप ठीक ढंग से, सलीके से अपनी बात नहीं कह सकते हैं तो कृपया चुप रहिए। एक व्यक्ति चार वर्ष की उम्र से ही बोलना सीख जाता है लेकिन वही चालीस साल तक बोलकर भी चुप रहना नहीं सीख पाता। चार घंटे लगातार बोलना सरल होता है पर चालीस मिनिट मौन रहना बहुत कठिन लगता है। बोलना अगर चाँदी है तो चुप रहना सोना है। हमारे यहाँ पांच समितियों का जिक्र आता है जिसमें एक है भाषा समिति। अपनी वाणी का विवेकपूर्वक उपयोग करना भी धर्म है। अगर आप अविवेक से गाली-गलौज के साथ भाषा का प्रयोग करते हैं, भले ही आप सामायिक-पूजा ही क्यों न करते हों, पर यह अधर्म है। हाँ, अगर 140 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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