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खान-पान की मर्यादा तीसरी मर्यादा है। कब कितना खाना, आप इसका भी विवेक रखें। जितनी भूख हो उससे कम खाएँ लेकिन यह भी देखें कि क्या खा रहे हैं ? विवेक रखें कि कितनी सीमा तक खाना है? एक, दो, तीन, चार या और अधिक कितनी बार? या दिन भर ही मँह चल रहा है। नियम से खायें - सुबह हल्का नाश्ता लें, दोपहर में खाना खाएँ फिर एक बार और हल्का-फुल्का नाश्ता कर सकते हैं और अंत में शाम को खाना लें। मेरे खयाल से इतना पर्याप्त है। अगर आप दिन में चार ही बार खाने की मर्यादा रखेंगे तो सड़क पर चलते हुए समोसे की गंध आपको ललचायेगी नहीं। माना कि मिठाई मुफ्त की है लेकिन पेट तो आपका अपना है। कैदी हैं या नेता?
इन्द्रियों का उपयोग करो, लेकिन संयमपूर्वक। यह देख लो कि तुम इन्द्रियों के अनुसार चलते हो या इन्द्रियाँ तुम्हारे अनुसार चल रही हैं।
मुझे याद है - एक व्यक्ति के आस-पास पांच पुलिसवाले चल रहे थे। किसी बच्चे ने यह दृश्य देखकर अपने पिता से पूछा, 'पिताजी, यह आदमी जो पुलिस वालों के साथ जा रहा है, यह कौन है ?' पिता ने कहा - 'यह नेता है।''तो नेता वह होता है जिसके साथ पांच पुलिस वाले होते हैं,' बच्चे ने कहा, 'ठीक है,' बच्चा समझ गया। थोड़ी देर बाद बच्चे ने देखा कि एक अन्य आदमी के साथ भी पांच पुलिस वाले चल रहे थे। बच्चे ने पिता से पछा, 'क्या यह भी नेता है?' पिता ने कहा, 'नहीं, यह नेता नहीं है, यह तो चोर है चोर।' 'समझ गया जिनके साथ पांच पुलिस वाले होते हैं वे चोर होते हैं', बच्चे ने कहा, पर मैं यह बात नहीं समझ सका कि पहले वाला नेता और यह दूसरा चोर कैसे हुआ?' तब पिता ने कहा, 'यही तो जीवन है। पहले वाले की सेवा में उसके अधीन पांच पुलिस वाले चल रहे थे और यह दूसरा वाला पुलिस के अधीन चल रहा था।'
आप देख लें कि ईश्वर ने आपको भी पांच पुलिस वाले दिये हैं। कान, नाक, आँख, जीभ और स्पर्श का सुख ये पांच पुलिस वाले हैं। अगर आप इनके अधीन चल रहे हैं तो आप इनके गुलाम हैं और ये पांच आपके अधीन हैं तो आप नेता हो जाएंगे। अब आप पर निर्भर है कि आप
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