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क्या होना चाहते हैं, कैदी या नेता? जीभ का संयम न रखने के कारण मछली कांटे में फँसती है। आँख का संयम न रख पाने के कारण पतंगा दीपक में जल कर मरता है। शरीर पर संयम न रख पाने के कारण हाथी गड्ढे में जाकर गिरता है। नाक का संयम न रख पाने के कारण भंवरा फूल में बंद होने को मजबूर होता है और कान का संयम न रख पाने के कारण हिरण जाल में फँस जाया करता है। ये एक-एक प्राणी एक-एक इन्द्रिय के असंयम से फँसते हैं लेकिन जो मनुष्य पांचों ही इन्द्रियों में उलझा हुआ है, उसका क्या हाल होगा?
प्रत्येक मानव को चाहिये कि वह अपनी इन्द्रियों पर मर्यादा का अंकुश अवश्य रखे। हम खाएं, पीएं, उठे बैठें, चले फिरें कुछ भी करें पर संयम की मर्यादा का साथ रहना श्रेष्ठ है। खाओ पिओ छको मत, बोलो चालो बको मत, देखो भालो तको मत और चालो फिरो थको मत।
संयम की मर्यादा बंधन नहीं अपितु निर्मल और व्यवस्थित जीने की शैली है। निरंकुश जीवन व्यर्थ है। मर्यादा चाहे राम के युग में हो या आज, इसे जो भी जिये मर्यादा पुरुषोत्तम वही है।
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