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दहलीज पर आकर अपनी इच्छा से राजसिंहासन का त्याग करके वनवास ग्रहण किया, उन्होंने अपने बुढ़ापे को सुखी किया और जिन्होंने सत्ता की लिप्सा के चलते राजसिंहासन का त्याग नहीं किया वे अपनी ही संतानों के द्वारा या तो मारे गए या उन्होंने नानाविध यंत्रणाएँ भोगीं। जो बुढ़ापे की दहलीज पर पहँचकर भी अपनी मुक्ति को साधने का प्रयास नहीं करता वह फिर कब मुक्ति का प्रयास करेगा?
__कहते हैं- राजा दशरथ आईने के सामने खड़े अपना चेहरा निहार रहे थे। उन्होंने देखा कि उनके सिर का एक बाल सफेद हो गया है। एक सफेद बाल को देखकर दशरथ की आत्मा आंदोलित हो गई। वे रनिवास में पहुँचे और बोले, 'आज के बाद संसार में मेरी कोई अनुरक्ति
और आसक्ति नहीं रहेगी।' रानियाँ चौंक गई और बोली 'आज यह क्या हो गया? आपके मन में अचानक वैराग्य कैसे जग गया?' दशरथ ने कहा - 'देखो मेरे सिर का एक बाल सफेद हो गया है। अब जीवन को मुक्ति की ओर ले जाने की वेला आ गई है।'
दशरथ ने सिर में एक सफेद बाल देखा और वैराग्य जग गया। जरा आईने में आप अपना चेहरा देखें। कइयों के सारे बाल सफेद हो गए हैं, फिर भी वही आसक्ति और अनुरक्ति बनी हुई है। व्यक्ति स्वयं को पकड़े, स्वयं में उतरे, स्वयं में जीए। बाहर की आसक्ति और अनुरक्ति के बजाय व्यक्ति स्वयं में उतरकर जीए। यह सारा संसार, यह सारी दुनिया बनी-बनायी बंधन की माया है। व्यक्ति ने स्वयं बंधन बाँधे हैं और स्वयं ही आसक्त हो रहा है। कोई किसी को बाँधता नहीं है, हम ही जानबूझकर बँधे और जुड़े हैं। रिजर्वेशन कुछ पल का
आपको किसी गंतव्य स्थान पर जाना है और आपने रिजर्वेशन करा रखा है। नियत समय पर आप स्टेशन पहुँचे, ट्रेन में सवार हुए पर डिब्बे में आपने देखा कि आपकी रिजर्व सीट पर कोई दूसरा बैठा हुआ है। आप उससे कहते हैं, 'उठो भाई, यह मेरी सीट है।' वह भोला-भाला आदमी दूसरी जगह पर बैठ जाता है। आप अपने गंतव्य पर पहुंचकर उतरने लगते हैं कि तभी पीछे से आवाज आती है, 'रुको!' आप पीछे
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