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मुड़कर देखते हैं कि यह वही व्यक्ति है जिसे आपने सीट से उठाया था । आप पूछते हैं - 'क्यों ?' वह कहता है, 'अपनी सीट तो लेते जाओ, तुम कह रहे थे ना, कि यह सीट मेरी है । '
याद रखें जिंदगी में की गई सारी व्यवस्थाएँ रिजर्वेशन की तरह हैं, किसी का आठ घंटे का रिजर्वेशन और किसी का चौबीस घंटे का । कुछ महीने और कुछ वर्षों के रिजर्वेशन पर हम चल रहे हैं। मालूम है, जिस ट्रेन में बैठे हो वह छोड़नी है, जिस डिब्बे में बैठे हो उसमें से उतरना है और जिस सीट पर बैठे हो उसके मोह का त्याग करना है, फिर आसक्ति कैसी ?
चलती चक्की देख कर दिया कबीर रोय ।
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोय ॥
संसार की चक्की में हर कोई पिसता जा रहा है । आप जानते हैं कि चक्की में भी कुछ गेहूं के दाने बिना पीसे रह जाते हैं । आखिर क्यों ? क्योंकि वे कील के आसपास रह जाते हैं । इसी तरह जिसने संयम, मर्यादा, विवेक की कील का सहारा पकड़ा है, वे संसार की चक्की में पिसकर भी अखंड रहते हैं बाकी तो गये चक्की में और आटा बन गए पिसकर ।
आइए, अब हम देखते हैं हमारे जीवन की क्या मर्यादा है, जिन्हें हम सरलता से जी सकते हैं। एक तो वह होता है जो दिन भर राम-राम जपता है और दूसरा वह है जो राम की मर्यादाओं को जीता है। जब तुम राम से पूछोगे कि इन दोनों में से कौन उन्हें प्रिय है तो नि:संदेह वे मर्यादाओं को जीने वाले का ही नाम लेंगे। महावीर की पूजा करने वाला महावीर को कितना पाएगा पता नहीं, लेकिन उनके आदर्श और नैतिक नियमों को जीने वाला महावीर के पास ही रहता है ।
जानें कम, जिएं ज्यादा
मर्यादाओं से जुड़ी जीवन की बातें प्राय: हर व्यक्ति जानता है । वह जानता है कि क्या अपनाया जाना चाहिए और क्या छोड़ा जाना चाहिए, लेकिन प्रमाद या आदतवश हम अपने संयम और विवेक को नजरअंदाज करते रहते हैं । सभी जानते हैं कि दूसरे को नहीं सताना चाहिए। रिश्वत नहीं लेना चाहिए और गलत दृष्टि नहीं डालनी चाहिए ।
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