Book Title: Chinta Krodh aur Tanav Mukti ke Saral Upay
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 123
________________ स्वीकार करें, प्रकृति का सान्निध्य जीवन में प्रकृति के सानिध्य में रहने की आदत डालें। हमने किसी एक ही व्यक्ति, वस्तु या स्थान से खुशियाँ जोड़ रखी थीं, संयोग से वह हमसे दूर हो गया अथवा टूट गया। ऐसी स्थिति में हम अपना पूरा जीवन उसी की व्यथा में खोते रहेंगे? प्रकृति ने जीवन की खुशियों को पाने के लिए हमारे इर्द-गिर्द हजारों उपाय किए हैं। प्रकृति अगर रंग बदलती है, मौसम बदलती है, तो इसके पीछे हमें खुशियाँ देना ही है ताकि हम एक ही रंग व मौसम को देखते हुए बोर न हो जाएँ। प्रकृति ने पानी में शीतलता दी है, फूलों में कोमलता और सुवास दी है, हरियाली में सुन्दरता दी है, तो इन सबके पीछे हमारे जीवन को विविधता और खुशियाँ देना ही रहा है। खास बात यह नहीं है कि हम क्या देख रहे हैं अपितु किस तरह से देख रहे हैं यह खास बात है। जितनी सहजता से प्रकृतिप्रदत सुविधाओं में हम जिएँगे वे हमारे लिए उतनी ही खुशियाँ दे सकेंगी। प्रकृति ने पहाड, नदी, झरने, वृक्ष, हरियाली, चाँद-सितारे और सूरज सब कुछ हमारे जीवन के लिए ही तो दिए हैं। इनमें से कुछ भी हमसे नहीं छीना जाता है। फिर भी पता नहीं, क्यों हम छोटी-छोटी बातों को लेकर दुःखी हो जाते हैं। अशांत मन के राजा को जो सुख महलों में कभी नसीब नहीं होता शांत मन वाले व्यक्ति को वह सुख झोंपड़े में भी मिल जाया करता है। प्रकृति ने जीवन में खुशियों के इतने निमित्त भर दिये हैं कि यदि हम एक ढूढेंगे तो हमें हजार मिलेंगे। हमारे इर्द-गिर्द खुशियों से भरे हुए निमित्त हैं। जरूरत है उनको उनके सही नजरिये से देखने की। खुशियों के रूप अनेक मुझे याद है, मैं किसी गाँव में किसी कच्ची बस्ती से गुजर रहा था। किसी झोंपड़ीनुमा कच्चे मकान में कोई राजस्थानी लोकगीत चल रहा था। घर के बाहर एक आठ-दस साल की बच्ची जिसके सामान्य से कपड़े पहने हुए थे, उस लोकगीत पर बड़ी तन्मयता से थिरक रही थी। मैंने देखा कि उस बच्ची के चेहरे पर संतोष और खुशी के भाव उमड़ रहे थे। सच! सहज प्रसन्नता के साथ उसका वह नृत्य मेरे मन को सुकून दे रहा था। 122 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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