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बाहर निकलिए चिंता के चक्रव्यूह से
चिंता चिता से बदतर है। मस्त रहने की आदत डालिये, चिंता से छुटकारा मिलेगा।
पूरी दुनिया में शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा जिसे किसी प्रकार की चिंता न सता रही हो। चिंता करना मनुष्य का सहज स्वभाव है। जैसे-जैसे व्यक्ति बड़ा होता है और जैसे-जैसे उसकी व्यवस्थाएँ बढ़ती हैं वैसे-वैसे मनुष्य के मनोमस्तिष्क में चिंता अपना बसेरा शुरू कर देती है। बचपन तक तो हम फिर भी चिंता-मुक्त रहते हैं, लेकिन इसके बाद धीरेधीरे अपनी दैनंदिन व्यवस्थाओं में इतने ज्यादा चिंतित हो जाते हैं कि हमारी चिंतन की धार समाप्त हो जाती है और हमें चिंता का जंग लग जाता है। किसी को इम्तहान की चिंता, किसी को होमवर्क की चिंता, कोई अपने कैरियर के लिए चिंतित, तो कोई नौकरी के लिए। किसी को विवाह के पहले चिंता सता रही है और किसी को बाद में । घर-खर्च, बेटी की शादी, बीमारियाँ, सेहत, बच्चों का भविष्य, प्रमोशन, पत्नी की फरमाइशें, कर्ज और भी पता नहीं जिंदगी में कितने-कितने कारण बन जाते हैं व्यक्ति की चिंता के लिए। चिंता : समाधान नहीं, स्वयं समस्या
चिंता इस तरह अपना घर बनाती है कि चिंता से मुक्त रहने की सलाह देने वाला भी स्वयं चिंतित ही होता है। सच्चाई तो यह है कि चिंता किसी समस्या का हल नहीं अपितु अपने आप में एक बड़ी समस्या है।
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