Book Title: Chinta Krodh aur Tanav Mukti ke Saral Upay
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 102
________________ जिसके मन में कठोरता, कटुता, कलह और संघर्ष की भावना रहती है उसके चित्त में कभी किसी के प्रति प्रेम नहीं होता । उसके प्रेम के सरोवर का पानी सूख जाता है और उसमें दरारें पड़ जाती हैं । स्नेह की कमी से मेलजोल में कटौती होती है । वह स्वयं तो दुःखी रहता ही है किंतु अपनी उपस्थिति से आसपास के लोगों को भी दुःखी करता है । अपने क्रोध और अहंकार से स्वयं को तो दंडित करता ही है, दूसरों को भी दंडित करने की सोचता रहता है । इतिहास में खून की जो नदियाँ बहती रही हैं, उनका एकमात्र कारण प्रतिशोध और बदले की भावना रही है । चिरकाल तक मनुष्य के मन में प्रतिशोध की भावना लहराती है। आइये, हम जीवन का बोध जगाएँ, प्रतिशोध को हटाएँ और प्रेम की गंगा-यमुना को अपने हृदय में बहाएँ। वैर बिन, ये चार दिन एक बार हम अपने मन को टटोलें, किसी धार्मिक ग्रन्थ की तरह ईमानदारी से अपने मन को पढ़ें। अपनी विचारस्थिति को पढ़े कि कहीं उसके भीतर कोई वैर तो नहीं है । चार दिन की छोटी-सी जिंदगी में दो दिन तो बीत गए और शेष दो दिन भी बीत जाएँगे - फिर किस बात का वैर-विरोध ! चार दिन की जिंदगी में, इतना न मचल के चल । दुनिया है चल - चलाव का रास्ता, जरा सँभल के चल ॥ छोटी-सी जिंदगी में कैसा वैर-विरोध ! मेरे प्रभु, छोटी-छोटी बातों की गांठें न बाँधें। जैसे गन्ने की गांठ में एक बूंद भी रस नहीं होता वैसे ही जिस आदमी के मन में गांठें बन जाती हैं, उसका जीवन भी नीरस हो जाता है। I इतिहास की एक घटना है - काशी में ब्रह्मदत्त नाम के एक नरेश हुए । उनके पड़ोसी राज्य ' कोशल' के राजा थे दीर्घेती । एक दफा कोशलनरेश और काशीनरेश के मध्य युद्ध हुआ । कोशलनरेश अपनी रानी को लेकर पलायन कर गए, क्योंकि उन्हें पता लग चुका था कि उनकी पराजय तय है। जंगल में वे दोनों कुटिया बनाकर रहने लगे। उस समय रानी गर्भवती थी । कुटिया में ही उसने एक बच्चे को जन्म दिया। दीर्घेती ने उस बच्चे Jain Education International 101 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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