Book Title: Chinta Krodh aur Tanav Mukti ke Saral Upay
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 114
________________ स्वाद में कितना अंतर था! आपकी पत्नी ने स्वादिष्ट भोजन तैयार किया था लेकिन आप चिंताग्रस्त थे, आप पर काम का दबाव और तनाव था अतः वह भोजन आपको फीका और बेकार लग रहा था। दूसरी बार आपकी खोई हुई वस्तु मिल गई थी तो आप बहुत खुश थे और भोजन करने में भी आपको स्वाद आ रहा था। भोजन न तो स्वादिष्ट होता है और न ही बेस्वाद। आपकी मनोदशाओं पर ही भोजन का स्वाद निर्भर है। प्रसन्नता तो शीत में सुहानी धूप जैसी है और गर्मी में शीतल छाया, शीतल बयार जैसी है। स्मरण रहे, जीवन में आने वाले निमित्त कभी एक जैसे नहीं रहते और न ही खुशियाँ एक जैसी रहती हैं। जीवन में मिले सुख और साधन भी एक जैसे नहीं रहते हैं। सूरज उगता है तो अस्त भी होता है, फल खिलते हैं तो मरझाते भी हैं। जब जवानी भी बढापे में तब्दील होती है तो जीवन की खुशियाँ कब तक रह सकती हैं? जीवन में आने वाले बदलाव को जो स्वीकार कर लेता है वही अपने जीवन को प्रसन्नता और शांति से जीने में सफल हो पाता है। जब तक आप पद पर थे तो जीवन में खुशियाँ थीं और आज भूतपूर्व हो गए हैं तब भी जीवन में खुशियाँ रखो। पद से प्रसन्नता को मत जोड़ो। किसी भी पद से भूतपूर्व होने पर भी आप प्रसन्न और शांत हैं तो अभूतपूर्व बनें रहेंगे और यदि दुख और ग़म में डूब गये हैं तो भूत बनने से आपको कोई रोक न पाएगा। याद रखें, हर वर्तमान को भूतपूर्व होना है। यही है जीवन का सच मुझे याद है - एक सम्राट को अभिलाषा थी कि वह जीवन के परम सत्य को जाने। इस हेतु उसने बड़े-बड़े पंडितों, ऋषियों, मुनियों व ज्ञानियों को बुलाया। वे लोग आते और अलग-अलग शास्त्रों की बातें बताकर चले जाते कि अमुक शास्त्र में यह कहा है, फलां पुस्तक में यह लिखा है। लेकिन किसी की बात से भी सम्राट् संतुष्ट न हुआ वे ज्ञानीजन जीवन के सत्य का प्रतिबोध राजा को न दे पाए। इस तरह वर्षों बीत गए। एक दिन एक अस्सी वर्षीय वृद्ध संत आया और बोला – 'सम्राट मैं तुम्हें जीवन का परम सत्य देने आया हूँ, वही सत्य जो मेरे गुरु ने मुझे दिया था।' - यह कहते हुए उसने अपनी भुजा पर बँधा हुआ ताबीज Jain Education International For Personal & Private Use Only For Perso113 www.jainelibrary.org

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