Book Title: Chinta Krodh aur Tanav Mukti ke Saral Upay
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal

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Page 120
________________ जो चिंता से मुक्त रहता है और होनी को होनी मानकर स्वीकार कर लेता है, वही सदाबहार प्रसन्न रह सकता है। दूसरे फले, इसलिए न जलें ____ हमारी प्रसन्नता का दूसरा बाधक तत्त्व ईर्ष्या है। मैं कई दफा लोगों के घरों में देखा करता हूँ कि बहुओं के चेहरे लटके हुए हैं और सास भी अलग उदास है। दो सुखी दिल को दुखी करती है एक ईर्ष्या । जब भी दूसरे के विकास को देखकर अन्तर्मन में थोड़ी सी भी ईर्ष्या जगती है तो यह ईर्ष्या जीवन की प्रसन्नता को छीन लेती है। दो सुखी जेठानी-देवरानी ईर्ष्या के कारण दुखी हो जाती है। दूसरा भले ही हमसे ईर्ष्या करे पर हम किसी से भी ईर्ष्या न करें। आप ईर्ष्या करके दो नुकसान उठाते हैं - एक तो आप अपना विकास नहीं कर पाते, सामने वाले के विकास को भी अवरुद्ध करने का प्रयास करते हैं। दूसरा यह कि ईर्ष्या के कारण आप हमेशा अवसाद, तनाव और घुटन से ग्रस्त हो जाते हैं। ईर्ष्या के चक्कर में पड़कर दूसरों का पानी उतारने का प्रयास रहता है। उसमें उसका कुछ अहित हो या न हो, तुम्हारा पानी जरूर उतर जाता है। ईर्ष्या मत करो। तुम्हें जो मिला है, तुम्हारे भाग्य का मिला है, जो दूसरे के भाग्य में है, वह उसे मिला है। फिर ईर्ष्याग्रस्त क्यों होते हो? हम दु:खी इसलिये नहीं हैं कि ईश्वर ने हमारे लिए कुछ कमी रखी है, हम द:खी हैं उन्हें देखकर जो सुखी हैं। औरों का सुख हमारे दुःख का कारण बन रहा है अन्तर्हृदय में जगी हुई ईर्ष्या की भावना से व्यक्ति भीतर ही भीतर जलता है और नष्ट हो जाता है। . क्रोध छीने बोध हमारी प्रसन्नता को छीनने वाला एक अन्य तत्त्व है - हमारा गुस्सा। दस मिनट का गुस्सा आपकी मानसिक शांति और प्रसन्नता को छीन लेता है। गुस्से में आकर आप गलत निर्णय ले लेते हैं। गुस्सैल व्यक्ति हर समय तनाव में अकड़ा हुआ और गंभीर दिखाई देता है। उसके चेहरे पर हँसी और मुस्कान कम ही आती है। गुस्सा करना बहुत महँगा है। उससे तुम अशांत तो होते ही हो अपने को दुःखी भी करते हो और जीवन में जानबूझकर संकटों को आमंत्रण देते हो। 119 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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