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कागज को पढ़ने लगा, यह भी बीत जाएगा। हाँ, यही जीवन का सच है - राजा सोचने लगा। कुछ घंटे पहले मैं नगर का सम्राट् था, लेकिन वह बीत गया। कुछ देर पहले मैं शत्रुसैनिकों द्वारा पकड़ा जा सकता था लेकिन वे मार्ग भटक गए - यह भी बीत गया। आज मैं जंगल में अकेला पड़ा हूँ। मेरे पास शक्ति और सम्पत्ति नहीं है। अरे, जब वे दिन भी बीत गए तो ये दिन भी बीत जाएंगे। सम्राट ने बार-बार उस मंत्र को पढ़ा और अपने मनोबल को मजबूत करते हुए आसपास के गाँवो में जाकर अपने सैन्यबल को इकट्ठा करने की कोशिश की और धीरे-धीरे विशाल सैन्यबल का निर्माण कर अपने ही नगर पर हमला कर दिया। भयंकर युद्ध लड़ा गया। शत्रु के सैनिक और राजा मारे गए। सम्राट ने अपने ही नगर, राजमहल
और राजगद्दी पर फिर कब्जा किया। सम्राट का पुनः राज्याभिषेक होने वाला था। नगर के श्रेष्ठि, मंत्री, सेनापति, राज-पुरोहित सभी राजा के सामने खड़े थे। राजपुरोहित ने मंत्र पढ़ना शुरू किया। राजा के सिर पर जैसे ही मुकुट रखा गया। राजा को कुछ याद आया और चेहरे पर उदासी छा गई। मंत्रियों और सेनापतियों ने पूछा – 'महाराज, यह क्या? आज तो हमारे लिए खुशियों का दिन है और आप इतने उदास?'
राजा ने अपनी जेब से फकीर का दिया हुआ कागज निकाला - 'यह भी बीत जाएगा।' एक दिन मैं सम्राट् था लेकिन पराजित होकर जंगल में अकेला पड़ा था, लेकिन आज फिर सम्राट बन गया तो क्या हुआ - 'यह भी बीत जाएगा।'
जो व्यक्ति अपने जीवन में आने वाली हर चीज के लिए यह सोचता है कि यह भी बीत जाएगा' - वही शांत रहता है। कल अगर तुम करोड़पति थे तो गुमान मत करो क्योंकि 'यह भी बीत जाएगा' और आज 'रोड़पति' हो गए हो तो ग़मगीन मत होओ, क्योंकि यह भी बीत जाएगा। जो व्यक्ति अपने जीवन की प्रत्येक गतिविधि से अप्रभावित रहता है और जानता है कि यह सब बीत जाने वाला है, वही स्थायी शांति को उपलब्ध होता है और हमेशा प्रसन्न और आनंदित रहता है। बाहर से जो मिलते हैं वह सुख होते हैं और जो भीतर से मिलता है वह जीवन की शांति और प्रसन्नता होती है।
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