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आप बाहर से नहीं बोल रहे हैं, मगर भीतर से उफान उभर रहा है तो तत्काल एक काम करें- किसी अन्य कार्य से स्वयं को जोड़ दें। थोड़ी देर के लिए किसी आस-पड़ौस के घर में चले जाएँ अथवा किसी अन्य स्थान या व्यक्ति के पास चले जायें। जहाँ आपकी मनः स्थिति बदल सकती हो। सावधान रहें जब आप गुस्से में हों तो भोजन न करें। इससे मनोवेगों में उत्तेजना आती है और वह भोजन हमारे लिए हानिकारक हो जाता है। थोड़ी देर विश्राम करें फिर शांत मन से भोजन करें। ध्यान रखें, गुस्सा करने के बाद अगर आप भोजन कर रहे हैं, तो भोजन को थोड़ा ज्यादा चबा-चबा कर खायें ताकि आपके क्रोध की ऊर्जा चबाने में खर्च हो जाए और आपका क्रोध शांत हो जाए।
कई बार परिस्थिति के अनुसार व्यक्ति को निर्णय करना पड़ता है कि कितनी मात्रा में क्रोध किया जाये अथवा न किया जाए। कभी-कभी क्रोध प्रकट करना आवश्यक भी हो जाता है और कभी-कभी बड़ा हानिकारक, पर लम्बे अर्से तक क्रोध को दबाकर रखना भी हानिकारक है। क्योंकि ऐसी स्थिति में क्रोध हमारे मानसिक संतुलन को बिगाड़ देता है। क्रोध को जीतें क्षमा से
क्षमा और सहनशीलता का विकास करें, ये काफी लाभदायक सूत्र है। किसी के क्रोध का सामना सहनशीलता से करना और मौका पड़ जाए तो शालीनतापूर्वक क्रोध करना हमारे व्यक्तित्व की महानता है। क्षमा तो एक ऐसा मंत्र है जिसे हजारों वर्षों से अपनाया गया है। बड़े-बड़े महापुरुषों ने इसी शस्त्र से आत्म-विजय के संग्राम में सफलता प्राप्त की है। बड़ी से बड़ी विपरीत स्थिति या घटना हो जाने के बावजूद जब व्यक्ति क्षमा भाव से भरा होता है तो विपरीत वातावरण उस पर प्रभाव नहीं डाल सकता। अंग्रेजी का एक बड़ा प्यारा-सा शब्द है सॉरी-क्षमा कीजिए। मनुष्य जो दिन में पच्चास बार इस शब्द का प्रयोग करता है भला विपरीत वातावरण में इसका उपयोग क्यों नहीं करता है। क्षमा से बढ़कर कोई शस्त्र नहीं होता और शांति से बढ़कर कोई शक्ति नहीं होती। हम अपने जीवन में इन दोनों का विकास करें।
अगर आप क्रोधी स्वभाव के हैं तो सप्ताह में क्रोध का एक व्रत
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