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करना चाहें, खुद ही मांग लीजिए।' कृष्ण मुस्कुराए और बोले, 'ठीक है, अगर मुझे ही कार्य का चयन करना है तो मैं चाहूँगा कि यज्ञ में आए हुए सभी ऋषि, ब्राह्मण, और अतिथियों के चरण-प्रक्षालन मैं करूँ।' ज्ञानी वही जो स्वीकारे अज्ञान
भगवान् वे नहीं जो स्वयं को भगवान् मानते हैं बल्कि वे ही भगवान् होते हैं जो औरों को भगवान् होने का सम्मान देते हैं। जो खुद को महान् मान लेते हैं उनसे अधिक हीन दुनिया में अन्य कोई नहीं होता। जिसने अपने जीवन के अज्ञान का बोध पा लिया है वही ज्ञानी होने का अधिकारी है।
सुकरात के समय में यूनान में ज्ञान की देवी 'डेल्फी' प्रकट हुई, जो भविष्यवाणी किया करती थी। लोगों ने पूछा कि दुनिया का सबसे अधिक ज्ञानी व्यक्ति कौन है ? देवी ने कहा, 'आज की तारीख में दुनिया का सबसे बड़ा ज्ञानी व्यक्ति तुम लोगों के शहर में ही है।' सबमें उत्सुकता जगी कि 'कौन?' 'सुकरात', देवी ने उत्तर दिया।
शहर के लोग सुकरात के पास गये और उन्हें कहा, 'देवी ने घोषणा की है कि आप दुनिया के सबसे महान् ज्ञानी व्यक्ति हैं।' सुकरात ने कहा, 'लगता है, देवी से घोषणा करने में कुछ भूल-चूक हो गई है। अरे, मैं तो दुनिया का सबसे बड़ा अज्ञानी हूँ।' लोग देवी के पास वापस आये और सुकरात ने जो कहा था वह बताते हुए पूछा कि, 'क्या सुकरात झूठ बोल रहे हैं? वे तो कहते हैं कि मैं तो दुनिया का सबसे बड़ा अज्ञानी हूँ।' देवी ने कहा, 'भक्तों, दुनिया में जिसे अपने अज्ञान का बोध हो गया है, वही तो सबसे बड़ा ज्ञानी है।'
एक घटना और है -- शाक्य वंश के सात राजकुमार भगवान् बुद्ध का प्रवचन सुनने पहुँचे। भगवान् की गूढ, किन्तु सरल प्रवाहमयी वाणी सुनकर वे प्रभावित हुए और प्रवचन सुनते-सुनते वैराग्य से जुड़ गए। उन्होंने निश्चय किया कि वे भी भिक्षु बनेंगे। उन्होंने खड़े होकर निवेदन किया- 'भगवन्, हम भी आपके श्रीचरणों में दीक्षित, प्रव्रजित होना चाहते हैं। हम भिक्षु बनना चाहते हैं।' बुद्ध ने कहा, 'अगर तुम्हारे मन में प्रबल वैराग्य जगा है तो मैं तैयार हूँ।' राजकुमारों ने सोचा कि अगर माता-पिता
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