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श्री रवीन्द्रनाथ टैगोर ने जो कुछ किया, उसे कहते हैं बड़प्पन । आदमी धन-दौलत या पद से बड़ा नहीं होता। वह बड़ा होता है व्यवहार से। जो धनवान, बलवान, गुणवान, ज्ञानवान होने के बाद भी अभिमान से दूर रहे वही सही अर्थों में बड़ा है। जो वक्त आने पर बड़प्पन दिखाये, वही बड़ा है। सच्चाई तो यह है हम उनसे प्रेम करते हैं जो हमारी प्रशंसा करते हैं, उनसे नहीं जिनकी हम प्रशंसा करते हैं। प्रभु से प्रार्थना करता हूँ वह हमारे जीवन से भले ही सब कुछ छीन ले पर हमारी विनम्रता को कभी भी न ले। क्योंकि यही वह ग्रीस है जो हमारी जीवन की गाड़ी को गति देता है।
लघुता में प्रभुता बसे, प्रभुता से प्रभु दूर।
जो लघुता धारण करे, प्रभुता आप हजूर । एक अहंकार और मनुष्य को होता है वह है 'ऐश्वर्य का अहंकार।' यह मेरी जमीन-जायदाद-कोठी-बंगला-गाड़ी-फैक्ट्री-ऑफिस-दुकान आदि आदि। अरे वाह, ऐसा खूबसूरत मकान जैसा मेरा है अन्य किसी का न होगा। यह जो अहंकार है वह तो सारी दुनिया को जीतने वाले सिकंदर का भी न रह सका। जब वह मर गया तो उसे दफनाने के लिये छ: फीट जमीन ही काम आई और ओढ़ने के लिये दो गज कफन का टुकड़ा।
सम्पन्नता के साथ सादगी और विनम्रता भी हो। आप छोड़ना ही चाहते हैं तो जरूर छोडें उस अहंकार को जो आपके भीतर है। रखना चाहते हैं तो अपने आत्मगौरव को रखें, स्वाभिमान को रखें, सकारात्मक सोच को रखें। आपने सफलता पाई है तो उसका प्रचार न करें, उसे जीना सीखें, उसे पचाना सीखें। जीवन में जैसे-जैसे ऊपर उठते जाएँ विनम्रता
और सदाशयता को ग्रहण करते जाएँ। महान् वही है जो विनम्र है, जिसके मन में सबके लिए समानता की भावना है। आप सभी अहंकार का त्याग करें और जीवन की ऊंचाइयों का स्पर्श करें। स्वयं को बड़ा और दूसरों को तुच्छ न मानें। भाग्य के खेल में किसका पासा कब पलटता है खबर नहीं लगती। अपने जीवन में पल रहे अहंकार रूपी भस्सासुर को भस्म कीजिये। आप शिवत्व को साधने में सफल हो जाएंगे। इसी मंगल-भावना के साथ आप सभी की चेतना में विराजित परम पिता परमेश्वर को प्रणाम।
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