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गुस्से में झुलसते रह गए। क्रोध एक अग्नि है। जो इसे वश में कर लेता है वो इसे बुझाने में समर्थ हो जाता है, और जो इसे वश में नहीं कर पाता वह इसमें जलने के लिए मजबूर हो जाता है। हम अपने क्रोध को वश में करें।
अन्यथा एक दिन हम इसके वश में हो जाएँगे। जो महावत अपने हाथी पर अंकुश नहीं रख पाता वो सावधान रहे, वह हाथियों से कभी भी दबोचा जा सकता है। हर समय औरों को डांट-डपट की आदत छोडें।
औरों की गलतियों को देखने की आदत बंद करें और अपने ही गिरेबाँ में झाँक कर देखने की कोशिश करें कि हम स्वयं कहाँ खड़े हैं। औरों की
और एक अंगुली उठाने वाला व्यक्ति क्या अपनी और मुड़ रही तीन अंगुलियों पर नजर डालेगा। कोई तीली थोड़े से संघर्ष से इसलिए जल जाती है क्योंकि उसके ऊपर सिर तो होता है पर दिमाग नहीं, पर मनुष्य जिसके पास सिर भी है और दिमाग भी, वह भला थोड़े से संघर्ष से दियासलाई की तरह क्यों जल उठता है।
व्यक्ति दो-चार महिने में एक बार घर के अनुशासन और मर्यादाओं को बरकरार रखने के लिए गुस्सा करता है तो वह वाजिब कहा जा सकता है, लेकिन रोज-ब-रोज अपने झूठे अहंकार के पोषण के लिए वह अपने बीबी बच्चों पर गुस्सा करता है तो ऐसा करके एक आलीशान बंगले में रहने वाले अपने परिवार को नरक बना देता है। मरने के बाद जो स्वर्ग मिला करता है उसे हमने देखा नहीं है और जिस नरक से बचना चाहते हैं हमने उसे भी नहीं देखा है पर सच तो यह है कि हम अपने ही निर्मल स्वभाव से अपने घर को स्वर्ग बनाते हैं और अपने ही उग्र स्वभाव से घर को नरक। प्रेम, शांति, दया, क्षमा, करुणा ये जीवन के स्वर्ग हैं। क्रोध, कषाय, चिंता, तनाव, घुटन, अवसाद, अहंकार ये जीवन के नरक हैं । क्या हम बुद्धिमानी का उपयोग करेंगे और अपने दो कदम स्वर्ग की ओर बढ़ाने की कोशिश करेंगे। उस स्वर्ग की ओर जिसे हम मरने के बाद पाना चाहते हैं, पर उसे जीते-जी पाया जा सकता है अगर हम ऐसा करते हैं तो स्वर्गीय होने से पहले ही अपने जीवन में स्वर्ग ईजाद कर सकते हैं।
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