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बेटे का या भाई-भाई का हो। जब अहं जगता है तो अर्हम् सो जाता है। अहम् और अर्हम्, अहम् और सर्वम्, अहम् और शिवम् ये दोनों एक साथ नहीं रह सकते। तुम्हारे भीतर एक ही रहेगा या तो अहम् रहेगा या शिवम्। अगर शिवम् को रखना है तो अहम् को हटाना पड़ेगा। अहम् अगर भीतर बैठा है तो शिवम् कभी साकार नहीं हो सकता। अहंकार हटेगा तो ही वह निराकार साकार बनेगा। अहंकार मानव एवं ईश्वर के बीच की मुख्य बाधा है। व्यक्ति साफ-साफ निर्णय करे वह अपने भीतर शिवत्व चाहता है या अहंकार। अभिमान नहीं, स्वाभिमान अपनाएं
___ अहंकार के दो रूप हैं - अभिमान और स्वाभिमान। अहंकार के कुछ बिंदु ऐसे हैं जिन्हें त्यागा जाना चाहिए लेकिन कुछ बिंदु ऐसे भी हैं जिन्हें जीया जाना चाहिए। शायद जिन्हें त्यागा जाना चाहिए, उन्हें तो हम जी रहे हैं और जिन्हें जीना चाहिए उनका हम त्याग किये हुए हैं। अभिमान मनष्य को अकड और घमंड देता है और स्वाभिमान मनुष्य को आत्म-गौरव देता है। हर व्यक्ति में स्वाभिमान और आत्मगौरव तो होना ही चाहिए लेकिन किसी में भी अभिमान, अकड़ और नकारात्मक जीवन का दृष्टिकोण नहीं होना चाहिए। अभिमान, अकड़ और घमंड जीवन के लिये नकारात्मक दृष्टिकोण देते हैं।
हम लोगों के भीतर प्रायः आत्मगौरव कम और आत्म-अभिमान अधिक होता है। स्वाभिमान कम और अहंकार तथा अभिमान ज्यादा होता है। आप जानते हैं कि रावण का अंत क्यों हुआ? इतिहास में सैकड़ों उदाहरण भरे पड़े हैं कि जहाँ व्यक्ति के झूठे दंभ, अनर्गल घमंड और व्यर्थ के अहंकार ने उसके जीवन को नष्ट किया है, उसकी सत्ता और सम्पति को नष्ट किया है। रावण उतना कामुक या कामांध नहीं था। उसका दोष उसके भीतर रहने वाली अहंकार की वृत्ति थी। वह कामांध कम, घमंडी ज्यादा था। रावण को कुंभकर्ण ने भी समझाया था कि वह सीता को वापस कर दे। और तो और, अंतिम पलों में इन्द्रजीत ने भी समझाया था कि सीता को वापस कर दे क्योंकि एक नारी के पीछे सोने की लंका और राक्षसवंश का अंत होने जा रहा था। शायद रावण की
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