Book Title: Chinta Krodh aur Tanav Mukti ke Saral Upay
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Pustak Mahal
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है जो चिंता पहले किसी बड़ी बात को लेकर हमारे भीतर जगती है, पीछे वही छोटी-छोटी बातों पर भी हम पर हावी होती है और उसके परिणामस्वरूप धीरे-धीरे मनुष्य उसका आदी हो जाता है। चिंता करने वाला व्यक्ति औरों की बजाय कहीं अधिक भावुक और संवेदनशील होता है और इस कारण छोटी-छोटी बातें भी उस पर गहरा दुष्प्रभाव छोड़ती है। चिंता की आदत बीड़ी-सिगरेट और शराब की आदत से भी कहीं ज्यादा खर्चीली है। बीड़ी पीने वाला बीड़ी पर खर्च करता है, सिगरेट पीने वाला सिगरेट पर और शराब पीने वाला शराब पर, वैसे ही चिंताग्रस्त व्यक्ति भी अपना बहुत बड़ा खर्चा डॉक्टर और दवाओं पर कर देता है।
किसी भी कार्य को एक ही तरीके से बार-बार करना ही आदत पड़ने का मूल कारण है। फिर चाहे हम चाहें या न चाहें। आदत एक रस्सी की तरह होती है, जिसका एक-एक धागा हम बनते हैं और उसके बाद रस्सी का रूप लेकर वे ही धागे हमें ही बाँध लेते हैं। चिंतित व्यक्ति सदैव निराशावादी और भयग्रस्त होता है। यदि चिंता ग्रस्त व्यक्ति चिंता की आदत को छोड़ने की बार-बार कोशिश करे तो वह कुछ समय के अभ्यास से इस रोग पर काफी विजय प्राप्त कर सकता है। विपरीत नजरिया चिंता का स्रोत
चिंता का आभास मुख्यत: दो स्रोतों से होता है, या तो व्यक्ति के वस्तु, स्थान और परिस्थिति को देखने का दृष्टिकोण अथवा मन में बैठा हुआ उसका भय या आशंका। किसी भी व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति को देखने के लिए दो नजरिये होते हैं। अगर हम हर समय उन्हें विपरीत नजरिये से देखते रहेंगे तो परिणाम यह आएगा कि एक दिन वे सब हमारी चिंता के मूल कारण बन जाएँगे जिससे हमारे विचार खराब होंगे। हमारा हर विचार चिंता और दुःख से भरा हुआ होगा और हमें हर कार्य में असफलता महसूस होगी। फिर तो स्थिति यह होगी कि हम एक विशेष प्रकार के भ्रम के शिकार हो जाएँगे। बादल गरजेंगे तो तुम्हें महसूस होगा कि तुमसे टकराने के लिए ही वे तुम्हारे पास से गुजरे हैं। अगर कार में बैठोगे तो बैठते ही किसी परिचित की दुर्घटना याद हो आएगी और इस तरह तुम्हारा हर कार्य तुम्हें मानसिक तौर पर बैचेन करता रहेगा।
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