________________
प्रायः हम सोचा करते हैं कि चिंताग्रस्त रहने वाले लोगों में कोई न कोई प्राकृतिक कमी रहती होगी, पर ऐसी बात नहीं है। चिंतित अथवा तनाव ग्रस्त रहने वाले लोगों में किसी तरह की कमजोरी नहीं होती बल्कि उसके मूल में वह अशुभ वातावरण होता है जिसमें वे रहते हैं। मैंने कई चिंताग्रस्त लोगों को देखा है जो तरह-तरह की बीमारियों से ग्रस्त होते हैं। कुछ मैंने ऐसे चिंतित लोगों को भी देखा है जिन्हें चिंता का दौरा आने पर उनका दिल तेजी से धड़कता है और हाथ पांव भी ठण्डे पड़ जाते हैं। ऐसे लागों को मानसिक, बैचेनी, सिर दुःखना और चक्कर आना आदि रोग लगने भी शुरू हो जाते हैं।
सामान्यतया हम चार घंटा काम करके जितनी थकावट पाते हैं उससे चार गुना थकावट हमें चार घंटे की चिंता दे देती है। चिंताग्रस्त व्यक्ति थोड़ा-सा काम करने से ही स्वयं को थका हुआ महसूस करता है। चिंता और बुरे आवेग- ये दोनों एक दूजे के पर्याय हैं और इनसे शरीर में शुगर की मात्रा बढ़ती है और शरीर कमजोर पड़ना शुरू हो जाता है। अधिक चिंता अधिक थकान देती है जबकि कम चिंता कम थकान देती है। हकीकत तो यह है कि चिंताग्रस्त व्यक्ति सदैव ही थका हुआ रहता है क्योंकि मनुष्य की थकान प्राय: उसके मस्तिष्क में ही उत्पन्न होती है। यदि आप रात भर सोये हैं और इसके बावजूद सुबह आपकी थकान नहीं उतरी है तो इसका मुख्य कारण चिंता और मानसिक तनाव ही है। कार्य को समझें कर्तव्य
मैंने देखा है कि कुछ लोग जब सुबह उठते हैं तो उसके एक-दो घंटे बाद ही वे स्वयं को थका हुआ महसूस करते हैं। मेरी नजर में इसका मुख्य कारण किसी प्रकार की चिंता है या ऊब है। दिन का आरम्भ होते ही जब व्यक्ति अपने कार्यों को व्यवस्थित क्रम नहीं दे पाता तो वह बारबार दिनभर के कार्यों को याद करके बोझिल होता है और उस पर उन कार्यों की चिंता सवार हो जाती है अथवा एक ही कार्य को बार-बार करने से व्यक्ति ऊब जाया करता है। विशेषकर घरेलू काम-काज करने वाली महिलाएँ इस परिस्थिति से गुजरती हैं। वे घर के काम काज में इस वातावरण को समझ नहीं पाती अथवा कार्यों को व्यवस्थित सम्पादित नहीं
Jain Education International
44 For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org