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जिन संबंधों को मधुर बनाने में हमें दस वर्ष तक एक दूसरे को सेटिस्फाइड करना पड़ता है वहीं हमारा दस मिनट का गुस्सा उन संबंधों पर पानी फेर सकता है। सफलता के बढ़ते हुए कदमों में केले के छिलके का काम करता है हमारा गुस्सा । हमारा क्रोध हमें सफलता से हाथ धोने के लिए मजबूर कर देता है। 24 घंटे भोजन करके हम जो शक्ति अपने शरीर में पाते हैं, कुछ मिनट का गुस्सा उस शक्ति को क्षीण कर देता है। जो बच्चे बचपन में ज्यादा गुस्सा करते हैं, बड़े होने पर उनका दिमाग कमजोर हो जाता है।
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क्रोध में व्यक्ति दो तरह का हिंसक हो जाता है। कभी वह औरों को नुकसान पहुँचाता है तो कभी स्वयं को । औरों को नुकसान पहुँचाने के लिए वह गाली-गलौच करता है, हाथापाई करता है अथवा किसी शस्त्र से प्रहार भी कर देता है । लेकिन कई बार व्यक्ति इसका उलटा भी कर लेता है । क्रोध में आकर वह अपना ही सिर दीवार से टकरा देता है भोजन कर रहा है तो थाली को उठाकर फेंक देता है । बचपन में मैंने देखा है कि हमारे मौहल्ले में एक ऐसा लड़का रहता था जिसे गुस्सा बहुत आता था। एक दिन उसके घर में किसी ने उसे टोक दिया। उस लड़के को गुस्सा आ गया, संयोग से उस दिन उसे परीक्षा देने जाना था किंतु गुस्से में भरकर उसने निर्णय ले लिया कि मैं परीक्षा देने नहीं जाऊँगा । घर के सारे लोग उसे समझा कर हार गये लेकिन वह परीक्षा देने नहीं गया और इस तरह आवेश में आकर लिये गये निर्णय ने उसका पूरा वर्ष बेकार कर दिया । इस तरह के निर्णय लेने के कुछ समय बाद व्यक्ति को भले ही लगता हो कि उसका वह निर्णय गलत था लेकिन वह कुछ कर पाये, उससे पहले ही उसका क्रोध अपना गलत प्रभाव दिखा ही देता है, और ऐसी स्थिति में व्यक्ति अपना अहित कर बैठता है ।
क्रोध के तीन भेद
व्यक्ति तीन तरह का क्रोध करता है । अल्पकालीन क्रोध, अस्थाई क्रोध और स्थाई क्रोध। अल्पकालीन गुस्सा कुछ मिनट या घंटे तक का होता है और उससे माहौल बिगड़ता है। किसी कारण से हड़बड़ी में व्यक्ति कुछ भी कह देता है और कुछ मिनट बाद अफसोस करता है ।
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