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ऐसा हो गया तो मेरा क्या होगा? यह सोच ही हमारे मन को निर्बल कर देती है।
मैं यह भी नहीं कहता कि भय सदा के लिए ही हानिकारक है या साहस सदैव लाभकारी है लेकिन प्रायः ये दोनों हमारे लिए हानि और लाभ से जुड़े रहते हैं। वह भय हमारे लिए चिंता का निमित्त बन जाता है जो बार-बार किसी एक ही बिन्दु, स्थान या व्यक्ति से जुड़ा रहता है। श्री कृष्ण द्वारा कुरुक्षेत्र में अर्जुन को दिया गया वह संदेश चिंता और तनाव से भरे हर किसी व्यक्ति के लिए बार-बार मननीय है कि हे अर्जन! हीनता
और नपुंसकता तुम्हें शोभा नहीं देती। मन में घर कर चुकी दुर्बलता का त्याग करो और अपने कर्तव्य के लिए सन्नद्ध रहो। मैं भी आपसे यही कहना चाहूँगा कि साहस और भय में हमेशा संतुलन रखा जाए। कुछ बिंदु ऐसे होते हैं जिनमें कुछ भय रखना अच्छी बात है और कुछ बिंदु ऐसे होते हैं जिनमें साहस की सीमा रखना ज्यादा श्रेष्ठ रहता है। मैं समझता हूँ कि पुलिस जितना काम नहीं करती उससे ज्यादा उसका भय काम करता है। तो यह भय अच्छा है क्योंकि इससे व्यक्ति समाज-विरोधी, राष्ट्रविरोधी गतिविधियों से बचता है। हाँ, मूर्खतापूर्ण साहस करना भी हानिकारक है। अगर कोई खूखार शेर के सामने निहत्था लड़ने के लिए चला जाएगा तो उसकी मृत्यु निश्चित है। जिएँ, संतुलित जीवन
अच्छा होगा कि हम विवेकपूर्ण और संतुलित जीवन जिएँ और ज्ञान के प्रकाश में तथ्यों का भलीभाँति अवलोकन करें। हम वास्तविकता
और अंधविश्वास में भेद समझें और ऐसे भय को अपने पास में न फटकने दें जो आपकी शारीरिक और वैचारिक शक्तियों का दमन करता है। अगर इसके बावजूद कोई अनजाना भय हमारे मनोमस्तिष्क में अपना घर बना ले तो हम भय के कारणों का विश्लेषण करें और पूरी शक्ति से भय की ग्रंथि को बाहर खदेड़ दें। आवेश और डर– इन दोनों से ही मुक्त होकर हम सफल और सक्षम व्यक्ति बन सकते हैं। याद रखें, हमारी चिंताएँ हमेशा हमारी कमजोरियों का कारण होती हैं।
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