________________ 15 श्री चन्द्रराजर्षि चरित्र देवविमान के समान सुंदर मंदिर है। इस मंदिर में चैत्र महीने की पूर्णिमा के अवसर पर नृत्य की सारी सामग्री साथ लेकर नृत्यमहोत्सव मनाने के लिए अनेक अप्सराएँ आती है। इन अप्सरओं की प्रमुख अप्सरा नीले रंग के वस्त्र और आभूषण पहन कर इस महोत्सव में भाग लेने के लिए आती है। यदि इस प्रमुख अप्सरा के शरीर पर पहना हुआ नीला वस्त्र चाहे जिस प्रकार से तुम हथिया सको तो तुम्हारी कार्यसिद्धि अवश्य हो जाएगी। शायद तुम्हारे मन में यह आशंका हो सकती है कि मुझे यह बात कैसे मालूम हुई / बात यह है कि पिछले वर्ष मैं मुझे सोने के पिंजड़े में बंद कर रखनेवाले विद्याधर के साथ वहाँ गया था और मैंने अपनी आँखों से यह दृश्य देखा था। इसलिए तुम मेरी बात पर विश्वास करो। . आनेवाले चैत्र महीने की पूर्णिमा के दिन तुम अकेली उस उद्यान में अवश्य पहुँच जाओ और जैसा मैंने तुम्हें अभी बताया वैसे किसी भी तरह से प्रमुख अप्सरा के शरीर पर पहना हुआ नीला वस्त्र प्राप्त कर लो।" इतना कह कर तोता उस आम्रवृक्ष की डाली पर से उड़ गया। तोते के जाने से विरह व्याकुल रानी वीरमती की आँखों से आँसुओं की झड़ी लग गई। रानी वीरमती पूरा दिन वहीं रोती हुई बैठी रही। संध्या समय होने पर राजा वीरसेन अपने परिवार के साथ आभानगरी लौट चला। वीरमती भी अपने महल में लौट आई। __कुछ दिन व्यतीत हो गए और कालक्रम के अनुसार चैत्र महीने की पूर्णिमा का दिन आया। रानी वीरमती को तोते की बात पूरी तरह से याद थी। उस दिन रानी ने दिन का समय ज्योंत्यों व्यतीत कर दिया। रात होते ही रानी ने वेशांतर किया और अपने महल की दासी की नजर बचा कर वह अकेली ही महल से बाहर निकली और तोते की बताई हुई राह पर से होती हुई उत्तर दिशा के जंगल की ओर तेजी से चल पड़ी। अब तक रानी ने कभी रात के समय अपने महल से बाहर पाँव भी नहीं रखा था / यहाँ तक कि दिन के उजाले में भी वह कभी अकेले कहीं नहीं गई थी। लेकिन आज स्वार्थवश वह असहाय, अकेली रात के समय जंगल की ओर चल निकली थी। जहाँ प्राणी का कोई स्वार्थ सिद्ध होनेवाला होता है, वहाँ उसमें शक्ति, शौर्य, सत्व, निर्भयता अनायास आ जाती है। ऐसा स्वार्थ यदि आत्महित साधने में आ जाए तो जगत् के जीवों का कल्याण हो जाएगा, उनका बेड़ा पार हो जाएगा, जन्म मृत्यु की परंपरा नित्य के लिए P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust