Book Title: Buddhisagar
Author(s): Sangramsinh Soni
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 12
________________ अशुद्ध प्रतीत होने वाले पाठ के बाद ( ) अर्धवृत्ताकार कोष्ठ में शुद्ध प्रतीत होने वाला पाठ रखा है। पतित पाठ [ ] चौरस कोष्ठ में रखा है। अधिक पाठ { } धनुषाकार कोष्ठ में रखा है। संस्कृत के प्रारंभिक अभ्यासकों की सुविधा हेतु श्लोकों का अन्वय किया है। संस्कृत भाषा से अनभिज्ञ पाठकों के लिये हिंदी भाषा में भावानुवाद प्रस्तुत है। अनुवाद के लिये अनेक प्रकारकी सहायक सामग्री (Testimonia) का आधार लिया है। परिशिष्ट-१ में श्लोकों का अकारादि क्रम है। परिशिष्ट-२ में संदर्भग्रंथ सूचि है। बुद्धिसागर ग्रंथ नैतिक उपदेश के साथ एक ऐतिहासिक संदर्भ लेकर आता है। इस ऐतिहासिक संदर्भ को समजे बिना बुद्धिसागर का यथार्थ मूल्यांकन नही हो सकता। जिस समय में बुद्धिसागर की रचना हुइ उस के समग्र परिवेश से अवगत होना आवश्यक है। बुद्धिसागर के रचयिता कवि संग्रामसिंह सोनी एक राजनीति में व्यस्त गृहस्थ थे। तत्कालीन राजनीति में सामरिक रूप से मालवा भारत का केंद्रवर्ती था और मालवा के केंद्रवर्ती संग्रामसिंह सोनी थे। इस ग्रंथ का विषय भी रोचक है। प्रास्ताविक सामग्री में इन सभी विषयों के अनुरूप लेख प्रस्तुत है। 'मध्यकालीन भारत' नामक लेख ग्रंथ, ग्रंथकार और की पार्श्वभूमि को उजागर करता है। यह लेख Jainism In Medieval India (1300-1800) (आंग्लानवाद-एस. एम. पहेदिया)का सारोद्धार है। हम ऐसे अभ्यासपूर्ण लेख के लेखक प्रति कृतज्ञ है। 'संग्रामसिंह सोनी' नामक लेख में ग्रंथकार की ऐतिहासिक और धार्मिक पृष्ठभूमि परिलक्षित होती है। इस के लेखक श्रीभद्रबाहुविजय है। यह लेख आनंद-कल्याण(वर्ष-१ अंक-२) से उद्धृत है। आनंदजी कल्याणजी पेढी ने इसे प्रगट करने की अनुमति प्रदान की अतः हम लेखक एवं पेढी के कृतज्ञ है। परिचय में बुद्धिसागर का आंतरिक अवलोकन है। संदर्भ सामग्री के अभाव से चाहते हुए भी हम विषय के अनुरूप सभी संदर्भ प्रस्तुत नहीं कर पाये इसके लिये क्षमा चाहते है। प्रस्तुत सम्पादन बुद्धिसागर के भावार्थ को समझने में सहायक होगा ऐसे विश्वास के साथ विद्वत्पुरुषों को प्रार्थना करते है कि सम्पादन में रह गई त्रुटियों को सुधारकर हमें सूचित करने का अनुग्रह करें। -सम्पादकगण

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