Book Title: Buddhisagar
Author(s): Sangramsinh Soni
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 66
________________ द्वितीयो नयतरङ्गः ३५ (अन्वयः) इत्यादिशालिहोत्रोक्तैः शुभैः लक्षणैः यः लक्षितः, गतिविद्भिः भटैः सततं चारु वाहितः, सबलः, तरुणः, शूरः, शुद्धवंशसमुद्भवः, राजवाहनयोग्योऽसौ हयः मेदुरामण्डनम् (वर्तते)। (अर्थः) इस प्रकार शालिहोत्र के द्वारा बताये गये लक्षणों से लक्षित किया हुआ और गति में पारंगत योद्धाओं के द्वारा हमेशा अच्छी तरह वाहन किया हुआ, बलवान, तरुण, शूर तथा शुद्धवंश में उत्पन्न, राजा के वाहन के लिए योग्य ऐसा अश्व, अश्वशाला की शोभा बढाने वाला होता है। अथ गजलक्षणम्। [मूल] अश्वानां षट्सहस्री यद्भटानामयुतं तथा। करोति नृपतेः कार्यं तदेकोऽपि मतङ्गजः॥१८४॥(२.९७) (अन्वयः) यद् भटानामयुतम् अश्वानां षट्सहस्री करोति तथा तदेकोऽपि मतङ्गजः नृपतेः कार्यं करोति। (अर्थः) राजा का जो कार्य दस हजार योद्धा तथा छः हजार घोडें करते हैं वही कार्य एक शक्तिशाली हाथी करता है। [मूल] भद्रो मन्दो मृगश्चापि सङ्कीर्णश्चेति जातयः। गजानां पालका(का आ)प्येते चतस्रः परिकीर्तिताः॥१८५॥(२.९८) (अन्वयः) भद्रः, मन्दः, मृगः, सङ्कीर्णश्च इति चतस्रः गजानां जातयः। पालका अप्येते परिकीर्तिताः। (अर्थः) भद्र, मंद, मृग और संकीर्ण ये हाथियों की जातियाँ हैं तथा महावत के भी चार प्रकार बताए गए हैं। मूल] सुन्दरावयवैर्युक्ता नात्युच्चा नातिवामनाः। न स्थूला न कृशाश्चापि समगात्रविराजिताः॥१८६॥(२.९९) [मूल] मधुसन्निभदन्ताश्च पृष्टवंशे धनुःसमाः। वराहतुल्यजघना गजाः स्युर्भद्रजातिजाः॥१८७॥(२.१००) (अन्वयः) सुन्दरावयवैः युक्ताः, नात्युच्चाः, नातिवामनाः, न स्थूला, न कृशाश्च समगात्रविराजिता अपि, दन्ताः मधुसन्निभाः, पृष्ठवंशे धनुःसमाः, वराहतुल्यजघना भद्रजातिजाः गजाः स्युः। (अर्थः) सुन्दर अवयवों से युक्त, न ज्यादा ऊँचे, न नाटे(बौने), न मोटा ना ही पतला अपि तु सभी अवयवों से समान, जिसके दांत शहद के समान हो, पीठ का भाग धनुष्य के समान हो, सूअर की तरह जघन(=पेट का अधोभाग), अच्छे कुल में उत्पन्न होने वाले हाथी भद्र जाति के होते है। [मल कक्षा वक्षोऽथ वलयः श्लथलम्बे गलोदरे। ___ कुक्षिः स्थूला च सैंहीव दृष्टिः स्यान्मन्ददन्तिनः॥१८८॥(२.१०१) (अन्वयः) मन्ददन्तिनः कक्षा अथ वक्षः वलयः, गलोदरे श्लथलम्बे, कुक्षिः स्थूला च सैंहीव(सैन्धीव) दृष्टिः स्यात्। १. = सिंधु देश की घोडी

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