Book Title: Buddhisagar
Author(s): Sangramsinh Soni
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 67
________________ ३६ बुद्धिसागरः (अर्थः) मन्द जाति के हाथी के कक्ष( बगल) और छाती गोलाकार होते है, गला और पेट शिथिल एवं लंबे होते है, पेट बडा होता है और आंखें सिंधु देश की घोडी जैसी होती है। [मूल] हस्ता िद्विजकर्णेषु सकण्ठेषु तनुश्च यः। मेण्ढ़वालाधरे ह्रस्वः स्थूलनेत्रो मृगः करी॥१८९॥(२.१०२) (अन्वयः) यः हस्ता िद्विजकर्णेषु सकण्ठेषु च तनुः ह्रस्वः मेण्ढ़ावालाधरे स्थूलनेत्रो मृगः करी। (अर्थः) जिसके संढ, पैर कान और कंठ पतले हो; लिंग,बाल और होंठ छोटे हो और नेत्र बडे हो ऐसा मृग नामक हाथी होता है। [मूल] परिणाहोच्चदैर्येषु वसुबाणनगैः करैः। मृगो गजः स्याद्धस्तैकद्विवृद्ध्या मन्दभद्रकौ॥१९०॥(२.१०३) (अन्वयः) परिणाहोच्चदैर्येषु वसुबाणनगैः करैः मृगो गजः स्यात्,हस्तैकद्विवृद्ध्या मन्दभद्रकौ (स्याताम्)। (अर्थः) मृग नामक हाथी विस्तार में आठ हाथ का होता है, पांच हाथ उंचा होता है, सात हाथ लंबा होता है। मंद नामक हाथी हाथी विस्तार में नौ हाथ का होता है, छह हाथ उंचा होता है, आठ हाथ लंबा होता है। भद्र नामक हाथी विस्तार में दस हाथ का होता है, सात हाथ उंचा होता है, नौ हाथ लंबा होता है। [मूल] चिह्नः प्रत्यङ्गकथितैर्भद्रादीनां विमिश्रितैः। दैर्ध्यादिमानैरमि(भि)तः प्रोक्तः सङ्कीर्णवारणः॥१९१॥(२.१०४) (अन्वयः) भद्रादीनां प्रत्यङ्गकथितैः विमिश्रितैः चिरैः दैर्ध्यादिमानैः अभितः सङ्कीर्णवारणः प्रोक्तः। (अर्थः) भद्र आदि हाथीओं के उपर कहे हुए मिश्रित चिह्नों से युक्त, दीर्घ आदि मान से रहित हाथी संकीर्ण कहा गया है। [मूल] शूरो धीरः सुगतिमान् भद्रजातिसमुद्भवः। मतङ्गजो महेन्द्रस्य वाहनार्थं प्रशस्यते॥१९२॥(२.१०५) (अन्वयः) शूरः, धीरः, सुगतिमान्, भद्रजातिसमुद्भवो मतङ्गजो महेन्द्रस्य वाहनार्थं प्रशस्यते। (अर्थः) शूर, धीर, अच्छी गतिवाला , भद्रजाति का हाथी राजा के वाहन हेतु प्रशस्त माना गया है। [मूल] नदद्विजयदन्दभिप्रवरतर्यतालव्रजैः स्फुरद्विविधनर्तनप्रसमितत्रिलोकीश्रमा। सुवंशनृपमाश्रिता विमलकीर्तिसन्नर्तकी सदैव विलसत्यहो नयतरङ्गरगाङ्गणे॥१९३॥ ___ (२.१०६)(पृथ्वी ) (अन्वयः) नदद्विजयदुन्दुभिप्रवरतूर्यतालव्रजैः, स्फुरद्विविधनर्तनप्रसमितत्रिलोकीश्रमा, सुवंशनृपमाश्रिता सन्नर्तकी विमलकीर्तिः नयतरङ्गरङ्गाङ्गणे सदैव विलसति।

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