Book Title: Buddhisagar
Author(s): Sangramsinh Soni
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 97
________________ ६६ बुद्धिसागरः (अन्वयः) सौम्याः व्ययाऽष्टमगताः सर्वकार्येषु निन्दिताः तथा त्रिकोणधनकेन्द्राष्टस्थिताः पापग्रहाः। (अर्थः) सौम्य ग्रह (चन्द्र, बुध, गुरु, शुक्र) बारहवें या आठवें स्थान में हो तो सभी कार्यों में निन्दित (वर्जित) होते हैं। और पापगृह त्रिकोण (५,९) केन्द्र में (१,४,७,१०) और आठवें स्थान में निन्दित कहे गये है। [मूल] त्रिकोण(ध)नस्रांशुगाः सकलकार्यसिद्धिप्रदाः, शुभा गगनगामिनस्तदितरास्त्रिवल्लभगाः। विवाहसमयेऽष्टगौ तरणिसूर्यपुत्रौ शुभौ, शशाङ्कभृगृलग्नपा रिपुगतास्तथा नो हिताः॥३२६॥(४.६१) (पृथ्वी) (अन्वयः) त्रिकोणनस्रांशुगाः सकलकार्यसिद्धिप्रदाः शुभाः गगनगामिनः तदितराः त्रिवल्लभगाः विवाहसमयेऽष्टगौ तरणिसूर्यपुत्रौ शुभौ तथा रिपुगताः शशाङ्कभृगुलग्नपा नो हिताः। (अर्थः) त्रिकोण में पंचम और नवम धनस्थान में, केन्द्र स्थान में शुभग्रह, सकल कार्य की सिद्धि प्रदान करते हैं। पापग्रह तृतीय, वल्लभ (सातवें) और बारहवें स्थान में शुभ होते हैं। विवाह में सूर्य और शनि आठवें स्थान में शुभ होते हैं। चन्द्र, शुक्र और लग्नेश छठे स्थान में शुभ नहीं होते हैं। [मूल] शुभे सकलकर्मणि ज्ञगुरुभार्गवा लग्नगा, दिशन्ति सुखसम्पदो विमलषड्बलैः शालिनः। विलग्नमशुभदं सदा खलखगासनालोकनैः, शशी निधनगः शुभं न कुरुते कदाचिभ्रुवम्॥३२७॥(४.६२) (पृथ्वी) (अन्वयः) शुभे सकलकर्मणि लग्नगा विमलषड्बलैः शालिनः ज्ञगुरुभार्गवा सुखसम्पदो दिशन्ति खलखगासनालोकनैः विलग्नं सदा अशुभदम्, निधनगः शशी कदाचिद् ध्रुवं शुभं न करुते। (अर्थः) सभी शुभ कार्य में लग्न में रहे हुवे बुध, गुरु, शुक्र, षड्बल से सहित सुख संपत्ति देते हैं। पापग्रह के होने पर या तो उनकी लग्न पर दृष्टि पडने से लग्न अशुभ फल देता है। आठवें स्थान में चन्द्र कभी शुभ फल नहीं देता है। इति ज्योतिःसारसङ्ग्रहः। शकुनसारः। [मूल] प्रस्थितोऽपि मुहूर्तेन विरुद्ध शकुने स्थिते। ___ पुरा न योग्यं गमनं तस्माच्छकुनमुच्यते॥३२८॥(४.६३) (अन्वयः) मुहूर्तेन प्रस्थितोऽपि विरुद्धे शकुने स्थिते पुरा गमनं न योग्यं तस्माच्छकुनमुच्यते। (अर्थः) मुहूर्त में प्रस्थान करनेवाले पुरुष को यदि शकुन अनुकूल नहीं है तो आगे जाना योग्य नहीं है इसी कारण से उसे शकुन कहा गया है।

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