Book Title: Buddhisagar
Author(s): Sangramsinh Soni
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 98
________________ चतुर्थः प्रकीर्णकतरङ्गः ६७ [मूल] [मूल] सपुत्रा स्त्री सवत्सा गौर्नृपः पाठीनखञ्जनौ। आमं मांसं ततं तूर्यं शङ्खभेरिरथध्वनिः॥३२९॥(४.६४) पूर्णकुम्भः प्रसूनानि शुक्लाम्बरधरो नरः। मृत्तिकाऽक्षतपात्रं च च्छत्रचामरवारणाः॥३३०॥(४.६५) [मूल] यायिनोऽभीष्टदा ह्येते दर्शनात्छ्रवणादपि। कुरङ्गा दक्षिणाः श्रेष्ठा यायिनामोजसङ्ख्यया॥३३१॥(४.६६) (अन्वयः) सपुत्रा स्त्री, सवत्सा गौः,नृपः पाठीनखञ्जनौ आमं मांसं ततं तूर्यं शङ्खभेरिरथध्वनिः पूर्णकुम्भः प्रसूनानि शुक्लाम्बरधरो नरः मृत्तिकाऽक्षतपात्रं च च्छत्रचामरवारणाः ह्येते दर्शनात्छ्रवणादपि यायिनोऽभीष्टदा। कुरङ्गा दक्षिणाः श्रेष्ठा यायिनामोजसङ्ख्यया। (अर्थः) पुत्र के साथ स्त्री, बछडे के साथ गाय, राजा, वेदपाठी ब्राह्मण, कच्चा मांस तत वाद्य(घण्टा आदि) तूर्य, शंख, भेरी और रथ की आवाज, पूर्ण कुंभ, फुल, शुक्लवस्त्र को धारण किया हुआ पुरुष, मिट्टी का और अक्षत का पात्र, छत्र, चामर और हाथी ये शकुन दर्शन से और श्रवण से प्रयान करनेवाले को अभीष्ट फल देते है। प्रयाण करनेवाले के दाहिनी ओर से जानेवाले विषम संख्या के कुरंग(हरिण, हरिण की एक जाती) श्रेष्ठ माने जाते हैं। [मूल] पिङ्गलौलूककाकाश्च खरदर्गादयः पथि। गच्छतो वामतः श्रेष्ठा विशतो दक्षिणाश्रिताः॥३३२॥(४.६७) (अन्वयः) पिङ्गलौलूककाकाः खरदुर्गादयः च पथि वामतः गच्छतः श्रेष्ठाः, दक्षिणाश्रिताः विशतः श्रेष्ठाः। (अर्थः) पिंगला (नेवला), घुक (उल्लू), कौवा, गधा, दुर्गा(कबूतरी) ये जाने के समय प्रयाण करनेवाले के बांयी ओर शुभ माने जाते है प्रवेश में दाहिनी ओर शुभ माने जाते हैं। [मूल] सगर्भा स्त्री रथो भग्नः कन्या प्रोक्तवयोऽधिका। क्व यासीति प्रवक्तारो गमनप्रतिषेधकाः॥३३३॥(४.६८) (अन्वयः) सगर्भा स्त्री भग्नः रथः प्रोक्तवयोऽधिका कन्या क्व यासि इति प्रवक्तारः गमनप्रतिषेधकाः। (अर्थः) सगर्भा स्त्री, टुटा हुआ रथ, अपने वय से अधिक वय बतानेवाली कन्या, “कहाँ जाते हो?” ऐसा पूछनेवाले गमन का प्रतिषेध करते हैं। [मूल] हीनाङ्गं कर्दमालिप्तं व्याधिक्षीणं नराधमम्। दृष्ट्वा सम्मुखमायातं न गच्छेत् कार्यसिद्धये॥३३४॥(४.६९) (अन्वयः) सम्मुखम् आयातं हीनाङ्गम्, कर्दमालिप्तम्, व्याधिक्षीणम्, नराधमम् दृष्ट्वा कार्यसिद्धये न गच्छेत्। (अर्थः) आँख के सामने आते हुए अंग से हीन, कीचड से लेपा हुआ, व्याधि से जीर्ण हुआ है ऐसे नराधम को देखकर कार्यसिद्धि की इच्छा हो तो गमन नहीं करना चाहिए। इति शकुनसारसङ्ग्रहः।

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