Book Title: Buddhisagar
Author(s): Sangramsinh Soni
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 15
________________ (१४) अल्लाउद्दीन के पुत्र कुतुबुद्दीन मुबारकशा (१३१६-१३२०) के शासनकाल में खरतरगच्छ के आचार्य श्रीजिनचंद्रसूरिजी (तृतीय) सन् १३१८ में दिल्ली पधारे थे। वे पातशाह कुतुबुद्दीन से जैनतीर्थों की यात्रा करने का फरमान प्राप्त करने में सफल हुए थे। (अर्थात् गैरमुस्लीमों को अपने पवित्र मंदिरो की यात्रा पर सख्त प्रतिबंध था) आचार्यश्री का एक भक्त श्रावक ठक्कुर फेरु पातशाह की टंकशाला (जहां पर चलनी सिक्के बनाये जाते है) का प्रमुख था। (उसने 'वास्तुसार' नामक ग्रंथ की रचना की है।) तुघलक वंश के शासकों पर जैनियों का ज्यादा प्रभाव था। आ.श्रीजिनचंद्र सू.(तृतीय) के पश्चात् आ.श्रीजिनकुशलसूरि उनके पट्ट पर आसीन हुए। ठक्कर फेरु के प्रभाव से ग्यासुद्दीन तुघलक (१३२० से १३२५) ने आ.श्रीजिनकुशलसूरिजी को गुजरात की तीर्थयात्रा करने का फरमान दिया। गुजरात की तीर्थयात्रा पूर्ण करके आ.श्रीजिनकुशलसूरिजी सिंधुदेश गये, जहां पर मुस्लीम राज्य था। उन्होंने अपनी अंतिम सांस सन् १३३२ में देवराजपुर में ली। उनके पट्ट पर आ.श्रीजिनपद्मसूरि आसीन हुए। ग्यासुद्दीन के शासनकाल में प्राग्वाट वंश के शूरा और वीरा नाम के श्रावक दिल्ली आये। उन्होंने सल्तनत में बड़ा पद प्राप्त किया। उसी समय में सलतान ने फरमान जाहिर किया कि श्रीमाली श्रावक अपनी प्रतिमा की रथयात्रा के लिये गजपति ले सकते है। ग्यासुद्दीन तुघलक का पुत्र महम्मद तुघलक सन् १२२५ से १३५१ तक दिल्ली का सुलतान रहा। महम्मद तुघलक उलेमाओं के प्रभाव में नहीं था अतः उसकी धार्मिक नीति सहिष्णु थी। अतः काष्टा संघ के आचार्य भट्टारक श्रीदुर्लभसेन (दिगंबर), नंदी संघ के श्रीभट्टारक रत्नकीर्ति, श्रीप्रभाचंद्र (दिगबर) विविधतीर्थकल्प के कर्ता श्वेतांबर आचार्य श्रीजिनप्रभसूरि, आचार्य श्रीजिनदेवसूरि, यति श्रीमहेंद्रसूरि को पर्याप्त सम्मान मिला। फिरोझ तुघलक (१३५१-१३८८) धर्मांध था। फिर भी दिगंबर भट्टारक श्रीप्रभाचंद्र, श्वेतांबर आचार्य श्रीरत्नशेखरसूरिने उस से सम्मान प्राप्त किया। आयुर्वेद के विशेषज्ञ रेखा पंडित को फिरोझ तुघलक मालवा के सुलतान ग्यासुद्दीन और अफघानसूरि शासकों से बहुमान प्राप्त हुआ। तुघलक वंश के पतन के बाद दिल्ली में सैयदवंश का शासन स्थापित हुआ। उनका शासन सन् १४१४ से लेकर १४५० तक चला। फिर एकबार अग्रवाल श्रेष्ठी दिल्ली में आये। इस समय में दिगंबर भट्टारकों का विशेष सम्मान हुआ। अपभ्रंश भाषा के विख्यात कवि 'रइधू' ने दिल्ली में विशेष स्थान प्राप्त किया। ___ सैयद वंश के बाद दिल्ली पर लोदी वंश का राज्य हुआ। लोदी वंश के शासकों का जैनियों के साथ अच्छे संबंध रहे। सिकंदर लोदी के समय में देवराज चौधरी दिल्ली का मुख्य व्यापारी था। सुलतान ने उसके गुरु श्रीविशालकीर्ति (दिगंबर) का सम्मान किया था। दूसरे अग्रवाल साधारण नामक अत्यंत मेधावी थे। उन्होंने बादशाह के पास से अनेक फरमान प्राप्त किये। गदाशाह नामक का श्रावक लोदी शासन में बडा अधिकारी था। वह बुंदेलखंड से था और विद्रोही था। उसने मूर्तिपूजा का विरोध किया। उसके विचारों का लोगों के उपर बहोत प्रभाव हुआ और परिणाम स्वरूप दिगंबर परंपरा में तरणपंथ का उद्गम हुआ। ऐसे ही प्रयास के फल स्वरूप श्वेतांबरपंथ में लोकां मत का प्रारंभ हुआ। अपने धार्मिक मत के अनुकूल होने के कारण मुस्लिम शासकों ने इस विचारधारा को वेग दिया।

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