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महमूद खिलजी का शासन था (October 22, 1500 - May 25, 1531 ) । संग्राम सोनी ने बादशाह के अत्यंत विश्वासु व्यक्तियों में अपनी जगह बना ली थी। इसके पीछे एक मजेदार कहानी इस तरह की है।
गुजरात के वढियार प्रान्त के लोलाडा गाँव से निकलकर संग्रामसिंह सोनी अपनी माता देवा, पत्नी तेजा और पुत्री हांसी के साथ मांडवगढ गया। वहाँ पहुँचने पर वो नगर में प्रवेश कर ही रहा था कि उसने एक अचंभित करनेवाला दृश्य देखाः एक सर्प फैले हुए फन पर दुर्गा पक्षी आकर बैठी हुयी थी और किलकारी मार रही थी, प्रसन्नता जता रही थी । संग्राम इस शकुन को देखकर जरा ठिठक सा गया। तभी समीप में खडे एक जानकार व्यक्तिने कहाः 'सेठ, आराम से, निश्चिंत होकर शहर में प्रवेश करे। यह शकुन बडी किस्मतवालों को मिलता है। ऐसे शकुन से शहर में प्रवेश पाने वाला आदमी धन के ढेरों पर रहता है।' और संग्राम सोनी ने अपने पुरखों की भूमि पर कदम रखा। फिर तो पीछे मुडकर देखने की फुरसत ही कहां रही ! धीरे धीरे उसने व्यापार वगैरह में अपनी जगह बना ली। एक दिन बादशाह गियासुद्दीन गरमी के दिनों में बगीचे में गया और एक घटादार आम के पेड के तले विश्राम करने लगा। तब उसे माली ने बताया की यह आम तो बांझ है। इस पर फल नही लगते। बादशाह ने आननफानन माली को हुकम कर दिया कि 'इस पेड को काट देना। बांझ आम की आवश्यकता क्या है?' संग्रामसिंह तब वही उपस्थित था। उसने हाथ जोडकर बादशाह से गुजारिश की:
'बादशाह सलामत! यह आम का पेड तो पैदाईशी बांझ है। आप इसे मुझे बख्शीश कर दे। इसे बख्श दे। इस पेड के जीव को अभयदान देने की रहम करे। हजूर की मेहरबानी होगी और अल्लाताला की मंजूरी होगी तो यह पेड बच जाएगा। इतना ही नहीं अगले मौसम तक इस पर फल भी आ जाएंगे।'
बादशाह ने तुनककर कहा: 'अगर अगले मौसम में इस आम पर फल नहीं आये तो में जो हाल इस पेड का करने जा रहा था, वह हाल में तेरा कर दूंगा।' सोनी ने सिर झुकाकर सजदा करते हुए बादशाह सलामत की बात मान ली।
संग्रामसिंह दयालु था, धर्म की परंपरा में पूरी आस्था रखता था। धर्म के प्रभाव से वह परिचित था। उसने आम के पेड तले भगवान की मूर्ति रखकर स्नात्रपूजा पढायी। चंदन - धूप - फल वगैरह अर्पण कर वृक्ष की पूजा की। इसके प्रभाव से उस आम के वृश्र का अधिष्ठायक देव जाग्रत हुआ और संग्राम पर खुशी जाहिर करते हुए बोलाः 'इस आम का जीव पूर्व जन्म में भी बांझ था और इस जन्मे में भी है पर तूने इसे अभयदान दिया है। बादशाह से इसकी जान बख्शायी है इसलिये मैं तेरे पर प्रसन्न हूं। इस पेड की जड के इर्दगिर्द काफी धन गडा पड़ा है। वह सब तू ले ले, वह तेरे नसीब का है। अब यह पेड बांझ नही रहेगा।'
संग्राम ने पेड के नीचे से सावधानी से धन निकाला और ले गया। कुदरत की करिश्माई कारीगरी कारगर हुई और मौसम के आते ही पूरा पेड आम के फल से लद गया। डालियाँ झुक गयी। संग्राम तो खुशी से नाच उठा। उसने आम के पके हुए फलो को उतारा और रजत थाल में सजाकर उपर रुमाल ढंक कर सुहागन महिला के सिर पर रखते हुए गाजे बाजे के साथ बादशाह के पास ले गया। बादशाह को नजराने के रूप में आम पेश किये और बताया कि ये उसी बांझ आम के फल है। बादशाह अत्यंत प्रसन्न हो उठा। उसने संग्राम को पाँच सुंदर