Book Title: Buddhisagar
Author(s): Sangramsinh Soni
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

View full book text
Previous | Next

Page 36
________________ प्रथमो धर्मतरङ्गः [मूल] (अर्थः) जो मनुष्य मोह से कृमि, कीटक, पशुओं का भी द्वेष करता है, उसके द्वारा निश्चित नरक में गिरने के कारण खुद के आत्मा का हि द्वेष किया गया। दयाधर्मं परित्यज्य योऽन्यधर्मान्निषेवते। वृथा श्रमं स कुरुते कृषि पर्वतभूमिषु॥२५॥(१.२५) (अन्वयः) यः दयाधर्मं परित्यज्य अन्यधर्मान् निषेवते, स वृथा श्रमं कुरुते, पर्वतभूमिषु कृषिम्(इव)। (अर्थः) जो दया धर्म का परित्याग करके अन्य धर्मों का सेवन करता है। वह व्यर्थ श्रम करता है। जैसे पर्वत भूमि में खेती करना (व्यर्थ है वैसे)। आत्मवत्प्राणिनः सर्वान् पश्यन् कृच्छ्राद्विमोचयेत्। स्वशक्त्या मनुजः सोऽग्रगण्यः पुण्यवतां भवेत्॥२६॥(१.२६) (अन्वयः) (यः) सर्वान् प्राणिनः आत्मवत् पश्यन् कृच्छ्रात् विमोचयेत्, स्वशक्त्या सः मनुजः पुण्यवतां अग्रगण्यः भवेत्। (अर्थः) (जो) सर्व प्राणियों को खुद की तरह देखता हुवा पीडा से छुडवाता है वह मनुष्य खुद की शक्ति से पुण्यवान् लोगों में अग्रेसर होता है। मिल अथ सत्यम्। [मूल] तपो दानं यशः शौचं विद्या च श्रुतशालिनी। आचारः शाश्वतो धर्मः सदा सत्ये व्यवस्थिताः॥२७॥(१.२७) (अन्वयः) तपः, दानम्, यशः, शौचम्, श्रुतशालिनी विद्या, आचारः, शाश्वतः धर्मः सदा सत्ये व्यवस्थिताः। (अर्थः) तप, दान, यश, पवित्रता, श्रुतपुरस्कृत विद्या, आचार और शाश्वतः धर्म सदा सत्य में स्थित हुवे है। [मूल] महाभूतानि चन्द्राौ धीहिह्री)श्रीकान्तिकीर्तयः। सत्यस्य वशगाश्चैते तस्मात् सत्यं सदा वदेत्॥२८॥(१.२८) (अन्वयः) चन्दाफ, धीहि(ही)श्रीकान्तिकीर्तयः, महाभूतानि च एते सत्यस्य वशगाः तस्मात् सदा सत्यं वदेत्। (अर्थः) चंद्र, सूर्य, बुद्धि, लज्जा, लक्ष्मी, कान्ति, कीर्ति, और महाभूत ये(सब) सत्यके वश में है इसिलिए सदा सत्य बोलें। [मूल] धर्मार्थव्यवहारेषु भये हास्यकथास्वपि। रते कान्ताजनैर्वापि न वदेदनृतं क्वचित्॥२९॥(१.२९) (अन्वयः) धर्मार्थव्यवहारेषु भये हास्यकथासु अपि वा कान्ताजनैः रते अपि न क्वचित् अनृतं वदेत्। (अर्थः) धर्म में, अर्थ में, व्यवहार में, भय में, हास्य में, कथा में, या पत्नी के साथ रत होते हुवे कभी भी असत्य नहि बोलना चाहिए।

Loading...

Page Navigation
1 ... 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130