Book Title: Buddhisagar
Author(s): Sangramsinh Soni
Publisher: Shrutbhuvan Sansodhan Kendra

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Page 28
________________ (२७) जिनसंहिता मुनि श्री जिनसेन जी ने जिनसंहिता की रचना की। इस ग्रंथ में ६ अधिकार है। १.ऋणादान, २.दायभाग, ३.सीमानिर्णय, ४.क्षेत्रविषय, ५.निस्स्वामित्ववस्तुविषय, ६.साहस, स्तेय, भोजनादिकानुचित व्यवहार और सुतकाशौच। राजनीति देवीदास नामक विद्वान ने राजनीति नामक प्राकृत ग्रंथ का निर्माण किया है। बुद्धिसागर कवि संग्रामसिंह सोनी ने बुद्धिसागर नामक संस्कृत ग्रंथ का निर्माण किया है। ग्रंथ के प्रतिपाद्य विषय नाम के अनुसार ही यह ग्रंथ बुद्धि का अर्थात् ज्ञान का सागर है। ग्रंथ की रचना चार तरंगों में हुई है। धर्मतरंग, नयतरंग, व्यवहारतरंग और प्रकीर्णकतरंग। तरंगों की रचना भी क्रम से की है। धर्म के कारण नीति में प्रवृत्ति होती हैं, नीति से व्यवहार और व्यवहार से प्रकीर्णार्थ प्राप्त होता है। तरंगों की श्लोक संख्या— धर्मतरंग८९, नयतरंग- १०७, व्यवहारतरंग- ७०, प्रकीर्णकतरंग- १५० ____धर्मतरंग में सामान्य नीति के विषय में उपदेश है। धर्म, सत्य, अस्तेय, अपरिग्रह, परस्त्रीपरिहार, गृही, ब्रह्मचारी, यती, गुरु, उपासक, शिष्य, माता-पिता के विषयमें उचित कर्तव्यों का निर्देश यहां प्रस्तुत है। नयतरंग- में राजनीति के विषय में उपदेश है। नीति, शासनविषयक बुद्धिमत्ता, राजा, राणी, कुमार, मन्त्री, अधिकारी, प्रजासेवक, अश्व और हाथी आदि के लक्षण यहां प्रस्तुत है।। व्यवहारतरंग में व्यवहार करते समय पालन करने योग्य बातों का उपदेश है। प्रकीर्णकतरंग में वास्तु, शरीर, वैद्यकसार, ज्योतिषसार, शकुनसार, सामुद्रिकसार, स्त्रीस्वरूप, रत्नपरीक्षा आदि विविध अर्थ-काम साधक विषयों का लक्षण प्रस्तुत है। अंत में मोक्षसाधक वैराग्य, चार योग आदि आध्यात्मिक विषय यहां प्रस्तुत किये है। संक्षेपमें बुद्धिसागर में बारह विषयों का वर्णन है। सामान्य नीति,राजनीति, वास्तु, शरीर, वैद्यक, ज्योतिष, शकुन, सामुद्रिक, स्त्रीस्वरूप, रत्नपरीक्षा, वैराग्य, चार योग। ग्रंथकार ने यह ग्रंथ अनेक शास्त्रों का अध्ययन करके निर्माण किया है। सूत्रबद्ध शैली के ग्रंथों का सार निकालकर समझने के लिए सरल ऐसे ग्रंथ का निर्माण किया है। - शैलेश शिंदे

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