________________ बड़ा गौरव था। आसाम, बंगाल आदि देशों के व्यापारकी प्रधान बागडोर यहीके व्यापारियोंके हाथमें है। साहित्यिक दृष्टिसे भी बीकानेर राज्य बड़ा गौरवशाली है। अकेले बीकानेर नगरमें ही 60-70 हजार प्राचीन हस्तलिखित प्रतियां सुरक्षित हैं। इनमें राजकीय अनूप संस्कृत लाइब्रेरी विश्व-विश्रुत है, जहां सैकड़ोंकी संख्यामें अन्यत्र अप्राप्य विविध विषयक ग्रन्थरत्न विद्यमान हैं / बड़ा उपासरा आदिके जैन ज्ञान भण्डारों में भी 20 हजारके लगभग हस्तलिखित प्रतियां हैं। हमारे संग्रह-श्री अभय जैन ग्रन्थालयमें अत्यन्त महत्त्वपूर्ण विविध सामग्री संग्रहीत है ही। राज्यके अन्य स्थानोंमें चूरूकी सुराणा लाइब्रेरी आदि प्रसिद्ध है इन सबका संक्षिप्त परिचय अ'गे दिया जायगा। कलाकी दृष्टिसे भी बीकानेर पश्चातपद नहीं, यहाँकी चित्रकलाकी शैली अपना विशिष्ट स्थान रखती है और बीकानेरी कलम गत तीन शताब्दियोंसे सर्वत्र प्रसिद्ध है। बीकानेर के सचित्र विज्ञप्तिपत्र, फुटकर चित्र एवं भित्तिचित्र इस बातके ज्वलन्त उदाहरण हैं। शिल्पकला की दृष्टिसे यहांका भांडासरजीका मंदिर सर्वत्र प्रसिद्ध है। इस विषयमें "बीकानेर आर्ट एण्ड आचिंटेक्चर" नामक ग्रन्थ द्रष्टव्य है। इस प्रकार विविध दृष्टियोंसे गौरवशाली बीकानेर राज्यके जैन अभिलेखोंका संग्रह प्रस्तुत प्रन्थमें उपस्थित किया जा रहा है इस प्रसंगसे वहाँके जैन इतिहास सम्बन्धी कुछ ज्ञातव्य बातें दे देना आवश्यक समझ आगेके पृष्ठोंमें संक्षिप्त प्रकाश डाला जा रहा है। बीकानेर राज्य-स्थापन एवं व्यवस्थामें जैनोंका हाथ जोधपुर नरेश राव जोधाजीने जब अपने प्रतापी पुत्र श्री बीकाजीको नवीन राज्यकी स्थापना करनेके हेतु जांगल देशमें भेजा तब उनके साथ चाचा कांधल, भाई जोगा, वीदा और नापा सांखलाके अतिरिक्त बोथरा वत्सराज एवं वैद लाखणसी आदि राजनीतिज्ञ ओसवाल भी थे। बीकानेर राज्यकी स्थापनामें इन सभी मेधावी व्यक्तियोंका महत्त्वपूर्ण हाथ रहा है। वच्छावत वंशके मूल पुरुष बच्छराजजी-जो राव बोकाजीके प्रधान मंत्री थे-ने अपने बुद्धि वैभवसे शासन तंत्रको सुसंचालित कर राज्यकी बड़ी उन्नति की। राज्य स्थापनासे लगाकर महाराजा रायसिंह के समय पर्य्यन्त शासन प्रबन्ध वच्छावत वंशका प्रमुख भाग रहा। यहां तक कि सभी राजाओंके प्रधान मंत्री इसी गौरवशाली वंशके ही होनेका उल्लेख "कर्मचन्द्र मंत्रि वंश प्रबन्ध" में पाया जाता है यथा राव बीकाजीके मन्त्री वत्सराज, राव लूणकरणजीके मंत्री कर्मसिंह, राव जयतसीजीके मंत्री वरसिंह और नगराज, राव कल्याणमल्लके मंत्री संग्रामसिंह व कर्मचन्द्र तथा राजा रायसिंहके मंत्रीश्वर कर्मचन्द्र थे। इन बुद्धिशाली मंत्रियोंने साम, दाम, दण्ड और भेद नीति द्वारा समय-समयपर आनेवाली विपत्तियोंसे राज्यकी रक्षा करनेके साथ-साथ उसकी महत्त्व वृद्धि और सीमा विस्तारके लिये पूर्ण "Aho Shrut Gyanam"