________________ नरेशोंका उचित आदर भी सब समय रहा है। अपनी व्यक्तिगत सुविधाओं ए' अन्य कई कारणोंसे भी उन्होंने कई पतियोंको अधिक महत्व दिया है। यहाँ इन सब बातोंका संक्षिप्त विवरण दिया जा रहा है। बीकानेर नरेशोंमें सर्वप्रथम महाराजा रायसिंहजी के युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरिजीके भक्त होनेका उल्लेख पाया जाता है। सं० 1636 में मन्त्रीश्वर कर्मचन्द्र की प्रार्थनासे सम्राट अकबरके पाससे सीरोहीकी 1050 जैनमूर्तियें आप ही लाए थे। सं० 1641 में युगप्रधान श्री जिनचन्द्रसूरिजीका लाहोरमें मंत्री कर्मचन्द्रजी ने युगप्रधान पदोत्सव आपकी आज्ञा प्राप्त करके किया था इसका उल्लेख आगेके प्रकरणमें किया जायगा! इस उत्सवके समय कुंवर दलपतसिंह के साथ महाराजाने कई ग्रन्थ सूरिजी महाराज को वहरा कर उनके प्रति अपनी आदर्श भक्तिका परिचय दिया था। इनमें से अब भी कई प्रतियो भण्डारों में प्राप्त हैं। कविवर समयसुन्दरजी आचार्यश्री के प्रमुख भक्त नरेशोंमें आपका उल्लेख इस प्रकार करते हैं "रायसिंह राजा भीम राउल सूर नइ सुरतान / बड़-बड़ा भूपति वयण मानै दिये आदर मान / गच्छपतिः।" उनके पट्टधर श्रीजिनसिंहसूरिजी का भी महाराजा से अच्छा सम्बन्ध था। इसके पश्चात् महाराजा करणसिंहजी के दिए हुए बड़े उपासरे आदि के परवाने पाये जाते हैं। विद्याविलासी महाराजा अनूपसिंहजी का तो श्रीजिनचन्द्रसूरिजी एवं कविवर धर्मवर्द्धन आदिसे खासा सम्बन्ध था। कविवर धर्मवर्द्धनजी ने महाराजा के राज्याभिषेक होनेके समय अनूपसिंहजीका राजस्थानी भाषामें गीत बनाया था। श्री जिनचन्द्रसूरिजीने अनूपसिंहजी को कई पत्र दिये थे जिनमें से कुछ पत्रोंकी नकल हमारे संग्रहमें है। महाराजा अनूपसिंहजी के मान्य यतिवर उदयचन्द्रजी का "पाण्डित्य दर्पण" ग्रन्थ उपलब्ध है। महाराजा अनूपसिंहजी के पुत्र राजकुमार आनन्दसिंहजीने बहुत आदरसे खरतर गच्छके यति नयणसीजीसे अनुरोध कर सं० 17.6 विजयादशमोको भर्तृहरिकृत शतकत्रयका हिन्दी गद्य-पद्यानुवाद कराया जिसकी प्रति हमारे संग्रहमें व "अनूप संस्कृत लाइब्रेरी" में विद्यमान है। सं० 1752 में महाराजा अनूपसिंहजी ने सगरगढ़से खरतर गच्छीय संघको श्रीपूज्यजी की भक्ति करने के प्रेरणात्मक निम्नोक्त पत्र दिया : स्वस्ति श्री महाराजाधिराज महाराजा श्री अनूपसिंहजी वचनात् महाजन खरतरा ओस. वाल जोग्य सुप्रसाद पांचजोजी तथा श्री पूज्यजी श्री बीकानेर चौमासे छै सो थे घणी सेवा भगत करजो काण कुरब राखजो सं० 1752 आषाढ़ सुदि 1 मुकाम गढ़ सगर! महाराजा अनूपसिंहजी समय-समय पर श्री जिनचन्द्रसूरिजी को पत्र दिया करते थे जिनमेंसे 2 पत्र हमारे संग्रहमें विद्यमान है जिनकी नकल यहाँ दी जाती है :१-इन पत्रोंकी नकलें हम जैन सिद्धान्त भास्करमें प्रकाशित कर चुके हैं। "Aho Shrut Gyanam"