Book Title: Bijganit Purvarddh
Author(s): Bapudev Shastri
Publisher: Medical Hall Press

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Page 12
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra भूमिका । बिना नहीं हो सकती इसलिये इन अतिप्राचीन ग्रन्थों के भी पहिले से बीजगणित यहां प्रसिद्ध है यह सिद्ध होता है । परन्तु बीजगणि के आ यन्य सब नष्ट हुए सांप्रत आर्यभट के काल से इधर जो बीज अब जो दक्षिण गोल में सूर्य हो तो शङ्कुतल में प्रया जोड़ देने से और जो उत्तर गोल में हो तो घटादेने से भुज बनता है :. प य + अ = भुज । १२ परंतु जब कोण में सूर्य रहता है तब उस को जितना अन्तर सममण्डल से रहता है उतनाहि याम्योत्तर वृत्त से रहता है इसलिये तब दृग्ज्या अर्थात् नतांशों की ध्या क होती है और भुज और कोटी ये दोनों भुज के समान होते हैं । २ 3 दृग्ज्या = २ २ प ... य + .... ७२ २ अप २ + य+३श्र 1 ७२ ३ अब शङ्कुबर्ग ओर कृग्ज्यावर्ग इन का योग त्रिज्यावर्ग के समान होता है । २ अप २ प य २ ... य + १२ www.kobatirth.org • य े प्र 3 छेदगमसे, ७२६ + खा, ( प + ७२) २ य +२ अ त्रि २२ पय े + २४ अप + १४४ श्र २ २ = ७२ त्रि य = २४ श्रपय ७‍ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २ १४४ प्र २४ श्रप २ + ७२ २ + ७५ प२ + ७२ इस से स्पष्ट प्रकाशित होता है कि इस में जो व्यक्त पक्ष है उस की करणी संज्ञा किई है और य के वारयोतक के आधे की फलसंज्ञा किई है । .. य े + २ फय = क २ वर्गपूर्ति से, य े + २ फय + फ मूल लेने से, य° फ = Vफर + क २ = फ + क = ७२ त्रि १४४ श्र १४४ (त्रि - श्र े) For Private and Personal Use Only - य - 1 फर + ऋ + फ इस से फल के वर्ग से सहित जो करणी उस का वर्गमूल उस फल से रहित वा महित करो जब सूर्य दक्षिण वा उत्तर गोल में होये यह स्पष्ट प्रकाशित होता है इस में जो (फर + क यह व्यक्तपक्ष का मूल ऋण मानो तो दोनों गोल में शङ्कमानं ऋण होगा अर्थात् तब सूर्य क्षितिज के नीचे कोणवृत्त में प्रवेगा । यह ऊपर का गणित केवल बीजही से बनता है इस से स्पष्ट है कि इन प्रतिप्राचीन सिद्धान्तों के भी पहिने मे बीजगणित का प्रचार यहां था ।

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