________________ संसार एवं स्वप्न गुणसेन ने एक साथ कई प्रश्न पूछ लिये और उसके प्रत्युत्तर के लिये सहसा रानी की ओर देखने लगा। तभी उसे अचानक आभास हुआ कि रानी अभी मौन खड़ी है। अतः तुरन्त रानी से आसन ग्रहण करने के लिये आग्रह करते हुए कहा - "बैठो और जो कुछ कहना है, आराम से कहो। आर्य नारी प्रायः पति के कहे बिना कभी न तो उठती थी, न ही बैठती थी। उसकी आज्ञा के पालन में ही वह अपना स्त्री धर्म समझती थी। फल स्वरूप प्रियदर्शना गुणसेन के चरण स्पर्श कर चुपचाप खड़ी थी, वह बैठी नहीं। वह पति की आज्ञा की राह देखती रही और आज्ञा मिलते ही उनके निकट बैठ गयी। तत्पश्चात् वह विनीत भाव में बोली - "हे स्वामी! मैं सुखपूर्वक सोयी थी, कि अकस्मात् हड़बड़ाकर जग पड़ी। आँख खोल कर देखा तो आभास हुआ कि अभी तो रात शेष है और मैंने कोई स्वप्न देखा है। स्वप्न के कारण ही मैं नींद में हड़बड़ा गई थी।" प्रियदर्शना को बीच में ही टोकते हुए गुणसेन ने पूछा - "देवी! ऐसा भला कौन सा स्वप्न देखा कि तुम्हारी नींद में यो अचानक रूकावट आ गई?" "राजन्! इस स्वप्न ने तो मेरे प्रभात को सुप्रभात में परिवर्तित कर दिया है। और अनायास ही मेरी गोदी को खुशहाली से भर दिया है। वास्तव में उसने मेरी आज की सुहब को खुशियों से भर दी है। तभी मेरी नींद उचट गयी। ...इसका मुझे कतई दुःख नहीं, स्वप्न दर्शन से मेरा रोमरोम आनन्द से पुलकित हो रहा है।" Lalithili IRAN महाराजा गुणसेन को अपूर्व स्वप्न का अनुभव सुनाती हुई महारानी। .. P.P.AC. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust