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सात
तेरह भाई थे । यह सब सुनकर वहां खड़े एक सेवक ने तुक्का कहासाध साध रोगिलो करे, ते तो आप-आपरो मंत । सुणज्यो रे सहर रा लोकां ! ए तेरापंथी तंत ॥ तेरह मुनि और तेरह श्रावकों का संख्यावाची नाम 'तेरहपंथ' प्रचलित हो गया । आचार्य भिक्षु ने इस शब्द की आचारपरक व्याख्या करते हुए कहा- हे प्रभो ! यह तेरह पंथ है . यह पांच महाव्रत, पांच समितियां और तीन गुप्तियों का पालन करने वाले साधु-साध्वियों का पंथ है। आचार्य भिक्षु किसी नए पंथ का प्रवर्तन करना नहीं चाहते थे । वे तपोनुष्ठान से आत्म-कल्याण के मार्ग पर अग्रसर हो रहे थे । नियति ने उनके मार्ग को बदला और तब वे धर्म प्रचार में लग गए। तेरह मुनियों में से सात अलग हो गए । केवल छह ही रह गए। पर आचार्य भिक्षु को संख्या की परवाह नहीं थी । वे सिद्धांतों पर चलने वाले मुनियों के सहावस्थान के हामी थे । विरोधों
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और परीषों से घबराना, असत्य के साथ समझौता करना, वे नहीं जानते थे । चातुर्मास में उनको गांव से निकाल किया गया । पात्री में दिया दान छीन लिया गया । अनेक व्यक्तियों को भिड़का कर विरोध खड़ा किया गया और गांव-गांव में आचार्य भिक्षु को उस विरोध का सामना करना पड़ा । उस समय के जैन श्रावकों ने अन्य जातिवाले लोगों को भिक्षु के विरोध में खड़ा कर वातावरण में विष घोल दिया । आचार्य भिक्षु सारे विरोध को समभाव से सहन करते हुए अपने गन्तव्य की ओर बढ़ते गए। धीरे-धीरे मार्ग प्रशस्त होता गया । तेरापंथ संघ में अनेक बालक-बालिकाएं तथा स्त्रीपुरुष प्रव्रजित हुए। तेरापंथ धर्मसंघ मरुधर में मंदार वृक्ष की भांति फलने
लगा ।
आप धर्मक्रांति के सूत्रधार थे । निरंतर विहार करते हुए आप गांवगांव में दया दान, सावद्य - निरवद्य, लौकिक-लोकोत्तर धर्म, अनगार धर्म और आगार धर्म आदि तत्वों को समझाते रहे । आप औत्पत्तिकी बुद्धि के धनी थे । स्थान-स्थान में धार्मिक तत्त्वचर्चा में आपको उलझना पड़ता । आगमों के आलोक में आप अपने मन्तव्य की पुष्टि करते रहे । हृदय परि वर्तन में आपको अटूट विश्वास था । आगन्तुक व्यक्ति के मनोभावों को पढ़ने में आप निष्णात थे । एक व्यक्ति अन्यथा भाव से आपके पास आया और जिज्ञासा के स्वर में बोला - 'महाराज ! घोड़े के पैर कितने होते हैं ? ' आचार्य भिक्षु उसके प्रश्न की भावना को समझ कर कुछ उच्च स्वर में गिनने लगे - एक, दो, तीन, चार अरे ! घोड़े के चार पैर होते हैं । आगन्तुक ने तत्काल कहा - मैंने तो सुन रखा था कि आप महान् पंडित हैं, आगमवेत्ता हैं, और आप घोड़े के पैर बताने में एक, दो, तीन गिनने लगे । क्या आपको इतना भी व्यावहारिक ज्ञान नहीं है ? मैं तो और प्रश्न भी पूछना चाहता