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अज्ञान कहते हैं ।
दंसणवरणक्खयदो केवलदंसण सुणामभावो हु । चक्खुदंसणपमुहावरणीयखओवसमदो य ॥ 5 ॥ दर्शनावरणक्षयतः के वलदर्शनं सुनामभावो हि । चक्षुर्दर्शनप्रमुखावरणीयक्षयोपशमतश्च
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चक्खु अचक्खू ओहीदंसणभावा हवति नियमेण । पणविग्धक्खयजादा खाइयदाणादिपणभावा ||6|| चक्षुरचक्षुरवधिदर्शनभावा भवन्ति नियमेन । पंचविघ्न क्षयजाताः क्षायिक दानादिपंचभावाः अन्वयार्थ 5-6 (दसणवरणक्खयदो) दर्शनावरणीय के क्षय से (सुणामभावो) सार्थक नामवाला (केवलदंसण) केवल दर्शन होता है (य) और (चक्खुहंसणपमुहावरणीय) चक्षु दर्शन है प्रथम जिसमें अर्थात् चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण और अवधिदर्शनावरण के (खओवसमदो) क्षयोपशम से (जियमेण) नियम से (चक्खुअचक्खूओहीदंसणभावा) चक्षु, अचक्षु और अवधि दर्शन ये तीन भाव होते हैं । (पणविग्घक्खयजादा ) पाँच विघ्न अर्थात् अन्तराय कर्म के क्षय से (खाइयदाणादिपणभावा) क्षायिक दान आदि क्षायिक पाँच भाव प्रगट होते हैं।
विशेष क्षायिक भाव किसे कहते हैं ?
कर्मों के क्षय होने पर उत्पन्न होने वाला भाव क्षायिक है, तथा कर्मों के क्षय के लिए उत्पन्न हुआ भाव क्षायिक है, ऐसी दो प्रकार की शब्द व्युत्पत्ति ग्रहण करना चाहिए।
खाओवसमियभावो दाणं लाहं च भोगमुवभोगं । वीरियमेदे णेया पणविग्धखओवसमजादा || 7 || क्षायोपशमिकभावो दार्न लाभश्व भोग उपभोगः । वीर्यमेते ज्ञेया पंचविघ्नक्षयोपशमजाताः ar अन्वयार्थ 7 (पणविग्घखओवसम) पाँचों अन्तराय कर्मों के क्षयोपशम से ( खाओवसमियभावो) क्षायोपशमिक भाव रूप (दार्ण)
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